जब रंगलोक ने आगरा को मंटो से मिलाया

बैकुण्ठी देवी कन्या महाविद्यालय में ‘अरे भाई मंटो!’ का मंचन
आगरा में लगभग एक दशक से स्थापित हो चुके थिएटर समूह रंगलोक सांस्कृतिक संस्थानने नए वर्ष में शहर के साहित्यिक-सांस्कृतिक परिदृश्य में एक नया रंग जोड़ दिया। बालूगंज स्थित बैकुन्ठी देवी कन्या महाविद्यालय में दक्षिणी-एशिया के सबसे प्रमुख उर्दू साहित्यकारों में से एक सआदत हसन मंटो की लघु-कथाओं पर आधारित लघु-नाटिकाओं के संचय-‘अरे भाई मंटो!’ का मंचन कर रंगलोक ने ना सिर्फ शहर के रंगप्रेमियों को मनोरंजित किया बल्कि नई पीढ़ी की लड़कियों का मंटो एवं थिएटर से सहज परिचय भी कराया।
मंटो को साहित्य में उनकी तीखी कलम और प्रगतिशील सोच के लिए जाना जाता रहा है। इस मंचन में उनकी रोमांस पर आधारित तीन कहानियों को चुना गया था। हालांकि जहाँ रोमांस का तात्पर्य आमतौर पर हकीक़त से दूरी से होता है, वहीं मंटो की हकीक़त से कभी ना दूर हो सकने वाली आदत के चलते इन कहानियों में भी रोमांस दुनिया की हकीक़त की भयावहता और क्रूरता से दूर नहीं हो सकता था।
 
जहाँ पहले मंचन में रोमांस के नाम पर आधुनिक समाज में नौजवानों में फैली निर्थकता और दिशाहीनता का एक व्यंग्यात्मक चित्रण किया गया है वहीं दूसरे मंचन में प्रेम और खुशहाली के सपने देखने वाले अल्हड नवयुवा समाज का हिंसात्मक और क्रूर सत्ता और ताकत से टकराकर चूर-चूर होना दिखाया गया है। तीसरा मंचन मंटो के साहित्य के एक महत्वपूर्ण मौजूं, हिन्दुस्तान-पाकिस्तान-विभाजन के संदर्भ पर आधारित था। एक पुरुष-प्रधान समाज में एक मासूम लड़की के जीवन पर सामाजिक और राजनीतिक प्रहारों की दोहरी मार का क्या असर होता है, यही था इस कहानी का मुख्य विषय।
 
तकरीबन एक घंटे चला यह मंचन बेहद कसा हुआ और मनोरंजक था। बीच-बीच में फैज़ और इब्न-ए-इंशा की शायरी का इस्तेमाल इसे सांस्कृतिक गहराई प्रदान करता था। मंच सज्जा के मद्देनज़र यह मंचन रंगलोक के पिछले नाटकों से काफी अलग था। बम्बई और अमृतसर के आम मौहल्लों में आधारित कहानियों के चित्रण के लिए छत से ज़मीन तक लटके दो बड़े-बड़े फ्लेक्स होर्डिंग पर ऊपर से नीचे तक किसी रिहायशी इमारत के विभिन्न मालों के रूप में चित्र बने हुए थे जो आम ज़िंदगी और दुनिया के सूचक थे। बीच मंच में तीन ऐसी ही होर्डिंग और थे जो अति-यथार्थवाद यानि सर्रियलिज़्म से प्रेरित थे।
 
क्योंकि सभागार महाविद्यालय में स्थित था इसलिए पेशेवर नाटक मंचन के लिए पर्याप्त रूप से संसाधित नहीं था पर फिर भी बेहद कुशलता से मंच सज्जा से नाटक की सभी बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा कर लिया गया था। इसमें खास योगदान प्रकाश और ध्वनि व्यवस्था का था।
कलाकारों का अभिनय बेहद संयत था। हल्के क्षणों को मनोरंजक और भारी क्षणों को संवेदनशील बनाए रखने में सभी सफल थे। क्योंकि नाटिकाएँ लघु-कथाओं पर आधारित थीं इसलिए कहानी के कथावाचक की भूमिका विभिन्न किरदार आपस में बदलते रहे और कहानी की रवानगी को बरकरार रखा।
 
इन सब में गरिमा मिश्रा के निर्देशन की भूमिका को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है। उत्कृष्ट निर्देशन के साथ ही, मंटो की इन कहानियों का चुनाव सटीक था। रोमांस और जीवन की गहराइयों के इस मिश्रण से इन कहानियों में नवयुवा दर्शकों की रुचि निरन्तर बनी रही और संजीदा लम्हों में शान्ति और हल्के क्षणों में कहकहों का वातावरण बनता रहा।
 
रंगलोक थिएटर समूह ने पिछले कई वर्षों से आगरा शहर में रंगमंच की डोर का एक सिरा उठाया हुआ है। अपने कई मंचन सूरसदन में कर चुकने के बाद अब थिएटर को शहर के स्थापित शिक्षण संस्थानों में ले जाने की रंगलोक के संचालक डिम्पी मिश्रा की यह कवायद आगरा में थिएटर की रुचि और संजीदगी को जीवित रखे हुए है। हालांकि इससे पहले भी इस समूह ने कई प्रतिष्ठित साहित्यकारों की कृतियों को मंच पर जीवित किया है पर मंटो जैसे लीक से हटकर माने और जाने जाने वाले साहित्यकार को आगरा के लोगों से परिचित करा रंगलोक ने शहर के सांस्कृतिक-साहित्यिक परिदृश्य में एक अलग ही उदाहरण खड़ा कर दिया है।
 
साथ ही इस मंचन में भोपाल नाट्य अकादमी का सहयोग लेकर व्यापक नाट्य परिदृश्य में रंगलोक ने ना सिर्फ आगरा शहर को शामिल किया है बल्कि स्थानीय नाट्य परिदृश्य को और समृद्ध भी बनाया है। मंटो जैसे सहित्यकार की रचनात्मक दृष्टि और थिएटर के प्रति रुचि को नई पीढ़ी में फैलाने के इस प्रयास से रंगलोक सांस्कृतिक संस्थान ने नए साल की एक उत्कृष्ट शुरुआत की है।

 

 
-सुमित   

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