‘हमसफर’ नाटक की प्रस्तुति: एक टूटे हुए रिश्ते की सिसीफस-नुमा कहानी

ग्रीक पौराणिक कथा में सिसीफस नाम का एक किरदार है। सिसीफस को ग्रीक देवताओं द्वारा एक अभिशाप मिला था जिसके कारण उसे निरन्तर एक पहाड़ पर एक बड़ा सा पत्थर धक्का देकर चढ़ाना होता था और ऊपर पहुँचते ही वह पत्थर वापस पहाड़ से नीचे लुढ़क आता था और सिसीफस को फिर से नीचे जाकर उस पत्थर को वापस चढ़ाना शुरु करना होता था। सिसीफस की कहानी जीवन की उन जटिल परिस्थितियों को उजागर करती है जहाँ मनुष्य किसी ऐसे काम या उद्देश्य को पूरा करने में लगे रहते हैं जिसका अंत विफलता में ही होना है। एक बार प्रयास असफल होने पर भी वह फिर उसी कोशिश में लग जाते हैं, अंततः फिर उसी असफलता को हासिल करने के लिए।

जावेद सिद्दकी द्वारा लिखित ‘हमसफर’ नाटक ऐसे ही एक तलाकशुदा जोड़े की कहानी है जो अलग होने के बाद सिसीफस जैसी ही परिस्थिति में फँस गया है। अलग होकर भी दोनों किरदार, समीर जिसे हर्ष छाया ने निभाया है और सोनल जिसे लुब्ना सलीम ने निभाया है, बार-बार अपने आप को एक दूसरे के समक्ष खड़ा पाते हैं पर आकर्षण की दहलीज़ पर आते-आते फिर एक दूसरे से छिटक कर दूर हो जाते हैं। इस समीकरण में भी एक असंतुलन है जहाँ समीर, सोनल पर अधिक निर्भर है जबकि सोनल अपनी पुरानी परिस्थिति में दोबारा वापस जाने से बचना चाहती है। दोनों ही किरदार जैसे ही अपने रिश्ते को पहाड़ पर ढकेल कर चढ़ाते हैं वो वापस लुढ़ककर फिर नीचे आ जाता है। इस जद्दोजहद में दोनों ही अपने आप को कई बार भावनात्मक रूप से चोटिल पाते हैं।




मुँबई के ऐसे पीपुल्स थिएटर समूह द्वारा प्रस्तुत यह नाटक जिसका निर्देशन सलीम आरिफ ने किया है, इस सोमवार को आगरा के रंगलोक सांस्कृतिक संस्थान के सौजन्य से सूरसदन प्रेक्षागृह में प्रस्तुत किया गया। दो किरदारों के इस नाटक में मंच सज्जा मिनिमलिस्ट यानि न्यूनतमवादी है। एक ही नेपथ्य के आगे कई जगहों के दृश्य एक तरह से दोनों किरदारों के जीवन की दोहराती परिस्थितियों का प्रतीक बने रहे और दो कुर्सियों की एक दूसरे से बढ़ती-घटती और घटती-बढ़ती दूरी दोनों किरदारों के रिश्ते का प्रतीक बनी। दृश्यों के मध्य अंतराल में गुलज़ार की लिखी और उन्हीं के द्वारा बोली गई पंक्तियों की रिकॉर्डिंग से कहानी के भावनात्मक पहलुओं को रेखांकित किया जाता रहा।

इतनी कम मंच सज्जा में सबसे बड़ी चुनाती थी दोनों कलाकारों को अपने अभिनय से पूरी प्रस्तुति को संभाले रखना। यहाँ लुब्ना सलीम और हर्ष छाया का अभिनय में दशकों का अनुभव दिखाई पड़ता है। इसी नाटक की कई बार प्रस्तुति दे चुके दोनों कलाकार ने शुरु से ही बड़ी सरलता से एक दूसरे से खिंचे-खिंचे पर फिर भी बहुत सहज जोड़े की भूमिका को निभाया और नाटक जैसे-जैसे आगे बढ़ा दोनों के रिश्ते के उतार-चढ़ाव को बेहद खूबसूरती से मंच पर प्रस्तुत किया। खास बात थी कि दोनों ही कलाकारों और उनके अभिनय से अधिकांश दर्शकों के वाकिफ होते हुए भी उनके खुद के व्यक्तित्व और अभिनय शैली किरदारों पर बहुत अधिक हावी नहीं हुए।

रंगलोक सांस्कृतिक संस्थान के प्रयासों से शहर के उभरते कलाकारों और दर्शकों को एक जटिल प्रस्तुति में पेशेवर अभिनेताओं का अभिनय देखने को मिला। अगले महीने की 26 और 27 तारीख को रंगलोक द्वारा दो दिवसीय नाट्य कोलाज का आयोजन किया जा रहा है जिसमें एक प्रस्तुति स्वयं रंगलोक की और दूसरी प्रस्तुति मध्य प्रदेश के नाट्य समूह की होगी।

-सुमित

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