फणीश्वरनाथ रेणू की ‘पंचलाइट’ का रंगलोक द्वारा मंचन: ग्रामीण और आंचलिक परिवेश से साक्षात्कार कराती प्रस्तुति
आधुनिक मुख्य-धारा मनोरंजन और कलात्मक अभिव्यक्ति के संसार से ग्रामीण परिवेश गायब होता जा रहा है, इस बात से शायद ही कोई इत्तफाक ना रखे। मुख्य-धारा से अलग, नाट्यकला एक ऐसा माध्यम है जिसमें ग्रामीण परिवेश की कहानियों को जगह दी जाती रही है। हालांकि बड़े शहरों में, जहाँ नाट्यकला अधिक फलती-फूलती है, वहाँ आधुनिक शहरी मध्यम और उच्च मध्यम वर्ग के संसार की कहानियों ने प्राय: गाँव देहात की कहानियों को किनारे कर दिया है। ऐसे में आगरा शहर में रंगलोक सांस्कृतिक संस्थान द्वारा रविवार को सूरसदन प्रेक्षागृह में आयोजित चिर-प्रसिद्ध साहित्यकार फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी ‘पंचलाइट’ का मंचन कई मायनों में एक महत्वपूर्ण और ताज़ातरीन प्रयास था।
बिहार के एक छोटे से गाँव में एक लड़की के एक बाहर-गाँव के लड़के के साथ प्रेमसंबन्ध पर आधारित ये मासूम सी हास्यजनक कहानी मूल रूप से रेणु द्वारा रचित लघु-कथा है जिसका अनुरूपण एक लघु-नाटिका के रूप में किया गया। खास बात यह भी है कि इस नाटक का निर्देशन प्रख्यात नाटक और फिल्म कर्मी रंजीत कपूर ने किया जो आगरा में रंगलोक सांस्कृतिक संस्थान के अंतर्गत पिछले 20 दिनों चली कार्यशाला में आगरा के कई कलाकारों के साथ इस मंचन के लिए तैयारी करते रहे। इसमें उनका सहयोग किया सहायक निर्देशक सुनील उपाध्याय ने जो कि नाटक के सूत्रधार की भूमिका में भी नज़र आए।
नाटक ग्रामीण परिवेश पर आधारित तो था ही, साथ ही संगीत संरचना भी ग्रामीण परिवेश के अनुरूप नौटंकी पर आधारित थी। संगीत की नाटक में मुख्य भूमिका थी जिसमें हारमोनियम पर कप्तान सिंह और ढोलक पर सौदान सिंह ने निरन्तर संगीत के साथ-साथ नाटक की लय और ताल को भी बाँधे रखा। लगभग 45 मिनट चले इस नाटक में निरन्तर हास्य और मनोरंजन का माहौल बना रहा। बिहार की पृष्ठभूमि पर आधारित यह नाटक प्रांतीय रूप से प्रासंगिक नहीं रहता यदि सभी कलाकारों ने अपने उच्चारण और बोली के साथ न्याय ना किया होता। ऐसे में कई बार इस बात का डर बना रहता है कि कलाकार क्षेत्रीयता का बोध बनाए रखने के लिए बोली के उच्चारण में अतिशयोक्ति ना कर बैठें और उनकी भाषा बनावटी लगने लगे। पर सधे हुए अभिनय और संवाद बोलने के कारण सभी कलाकार इस गलती से बचे रहे।
डिम्पी मिश्रा ने खास कर इस नाटक में अपने अभिनय, नृत्य, आवाज़, गायन और ऊर्जा से मंच को उत्साह और जोश से भर दिया। साथ ही मुदित शर्मा, हर्षिता मिश्रा, गुंजन सिंघल और आकाश वशिष्ठ ने भी नाटक के हास्य भरे माहौल में खूब इजाफा किया।
कथावस्तु के लिहाज से इस मंचन के माध्यम से आगरा के दर्शकों को रेणु जैसे कथाकार की सामाजिक-राजनैतिक विषय-वस्तु और हास्य-व्यंग्य की लेखनी, दोनों की ही पकड़ और परख का अनुभव करने का अवसर मिला। साहित्य शोधकर्ता अमिता चतुर्वेदी इस प्रस्तुति के आंचलिक पहलुओं को उजागर करती हैं- “फणीश्वर नाथ रेणु एक आंचलिक उपन्यासकार के रूप में जाने जाते हैं। पंचलाईट भी रेणु की एक आंचलिक कहानी है। रेणु के उपन्यास ‘मैला आंचल’ की भांति इसमें भी महतो टोला, राजपूत टोला, बाह्मन टोला तथा बनिया टोला का उल्लेख किया गया है जिसमें उनकी आपसी प्रतिस्पर्धा को सहजता से दर्शाया गया है। गोधन और मुनरी के प्रेम-संबध के विरोध के रूप में गाँव का सामाजिक वातावरण प्रस्तुत होता है। बीच- बीच में गीतों के प्रयोग से बिहार की लोक-संस्कृति की झलक मिलती है। इन सभी माध्यमों से एक आंचलिक कहानी का नाट्य रूपान्तर हमारे सामने प्रस्तुत होकर वहाँ के परिवेश, वातावरण, रहन-सहन, वेशभूषा, बोलचाल से परिचित कराता है।“
ग्रामीण परिवेश से निरन्तर दूर जाते जा रहे मनोरंजन और कलात्मक परिदृश्य में इस तरह की कृति का चयन और उसका प्रभावी अनुरूपण और मंचन करना रंगलोक सांस्कृतिक संस्थान और रंजीत कपूर जैसे मँझे हुए रंगकर्मी की सफलता रहीं।