मीरा के जीवन पर रंगलोक द्वारा भव्य और समावेशी नृत्य नाटिका

 
भक्तिकाल के महत्वपूर्ण व्यक्तित्वों और रचनाकारों की बात करें तो मीरा का नाम लेना स्वाभाविक भी है पर साथ ही उस श्रृंखला के सभी व्यक्तित्वों में उनका नाम अलग भी खड़ा पाया जाता है। ऐसा इसलिए कि पहलेपहल तो वह एक स्त्री थीं जबकि उस समय के बाकी सभी कवि आदि प्रायः पुरुष थे और दूसरा कारण यह है कि मीरा एक साधनसंपन्न, राजकीय वर्ग में जन्मीं और पलीबढ़ीं थी, जिस दुनिया को त्याग कर उन्होंने भक्ति मार्ग को चुना। यह त्याग ना ही उन्हें बाकी सबसे अधिक महान बनाता है और ना ही उनकी पृष्ठभूमि उन्हें किसी से कम बनाती है। उनकी कहानी इसलिए खास है कि वह एक राजकुमारी थीं जिसने एक जोगन बनने का निश्चय किया था।
 
मीरा एक खास शख्सियत हैं जिनकी जीवनगाथा को कई रूपों में संजोया गया है। जैसा कि हिंदी विशेषज्ञ अमिता चतुर्वेदी बताती हैं भक्ति काव्य परंपरा में उन्हें सगुण ईश्वर (यानी ईश्वर के एक निश्चित रूप में मानने वाले) श्रेणी में रखा जाता है। वहीं प्रचलित भजन परंपरा में उनके लिखे पदों को कृष्ण भक्ति के लिए जाना जाता है। नारीवादी दृष्टिकोण से भारतीय इतिहास में उनको एक स्थान मिल सकता है। रजवाड़ों की परंपरा और पितृसत्तात्मक समाज के खिलाफ जाकर एक वैरागी का जीवन बिताने का निर्णय लेना और आम जनजीवन में जुड़ जाना उस दौर में उनके अदम्य साहस और जीवट का परिचय देता है। वहीं उनका एक स्थान राजस्थानी लोक संस्कृति में भी है, जहाँ उनकी कहानी को राजस्थानी भाषा एवं बोली, लोकगीतों और लोकनृत्यों के द्वारा पीढ़ी दर पीढ़ी जीवित और याद किया जाता है।

सूरसदन प्रेक्षागृह में इस शुक्रवार को आगरा के रंगलोक सांस्कृतिक संस्थान द्वारा मीरा के जीवन पर लोकसंस्कृति की परम्परा में एक नृत्य नाटिका द्वारा मंचन किया गया

विश्व नृत्य दिवस से दो दिन पूर्व मंचित इस नृत्य नाटिका का निर्देशन किया था डिम्पी मिश्रा ने और इसमें नृत्य निर्देशन की बागडोर संभाली थी हर्षिता मिश्रा ने। आरंभ से लेकर अंत तक एक रिकॉर्डिंग में चले इस नाटक में गीतसंगीत से लेकर नृत्य और संवाद तक सभी निरंतर एक पूर्व रिकॉर्ड किये गए ट्रैक पर चलाए गए जिन पर सभी कलाकारों ने लिपसिंक (यानी उन गीतों और संवादों के साथ तारतम्य में होंठ चलाना) किया। बिना रुके चलने वाली लगभग डेढ़ घंटे से भी अधिक इस प्रस्तुति में बिना रुके और बिना गलती किए अभिनय एवं नृत्य करना बेहद चुनौतीपूर्ण रहा होगा परंतु सभी कलाकारों ने इसमें परिपक्वता और कौशल का परिचय दिया।
 
नृत्य नाटिका का आयोजन अपनेआप में एक चुनौती है और उस पर एक शासकीय वर्ग की कहानी को प्रस्तुत करना और भी कठिन हो जाता है। इसमें ना सिर्फ कुशल नृत्य निर्देशन की, बल्कि साथ ही भव्यता का ध्यान रखने की भी आवश्यकता होती है। मंच परिकल्पना से लेकर प्रकाश परिकल्पना तक, कलाकारों की संख्या से लेकर उनकी पोशाकों तक और छोटेबड़े सभी वस्तुओं यानी प्रॉप्स के माध्यम से भव्यता का एहसास देने का पुरजोर प्रयास किया गया।
 
लोककथाओं में एक अहम भूमिका होती है कथावाचक की जो कहानी को एक ऐतिहासिक किंवदंती के रूप में दर्शकों को सुनाता है। इस भूमिका में थे सारांश भट्ट जिन्होंने इसे अपने नृत्य और अभिनय द्वारा कुशलतापूर्वक निभाया और पूरी प्रस्तुति को एक सूत्र में पिरोये रखा। अभिनय से अधिक इस प्रस्तुति में नृत्य की भूमिका थी। पारंपरिक नृत्यों से भरपूर इस प्रस्तुति में विभिन्न आयु वर्ग की कई लड़कियों और महिलाओं ने भाग लिया। यह इसलिए खास है क्योंकि प्रायः आगरा शहर में कलात्मक अभिव्यक्तियों में महिलाओं की भागीदारी कम ही देखी जाती है।
 
मीरा की भूमिका में स्वयं हर्षिता मिश्रा थीं। कथक नृत्य में प्रशिक्षित हर्षिता ने शुरू से अंत तक कभी अकेले तो कभी पूरे समूह के साथ निरंतर अभिनय किया जिसमें नृत्य की मात्रा अधिक थी। इस प्रकार लगातार इतनी देर तक नृत्य करते रहना और फिर भी विशेष अवसरों पर सटीक अभिनय भी करना उनकी बड़ी उपलब्धि थी जिसे दर्शकों ने तालियों से खूब सराहा। निर्देशन की खास बात थी कि सभी प्रकारों से, फिर चाहे कलाकारों के माध्यम से या फिर संगीत द्वारा, मंच पर फैले नृत्य प्रस्तुतियों द्वारा या फिर रंगारंग प्रकाश के द्वारा, मंच को भर दिया गया था।
 
मीराबाई की कहानी बचपन से लेकर बड़े तक अधिकांशतः सभी ने सुनी है। इस कहानी का रूप और प्रारूप भी कहने वाले के अनुसार बदल जाता है। कोई मीरा के आध्यात्मिक पक्ष को उजागर करता है तो कोई उनके परंपराओं और रूढ़ियों के विरुद्ध चलने वाले रूप को उभारता है। इस प्रस्तुति में उनके कई रूपों का समावेश था। भक्तिकाल के सभी व्यक्तित्वों की यही खास बात है कि वे ईश्वर को मानते हुए समाज की कई परंपराओं का खंडन करते हैं। जैसा कि अमिता बताती हैं मीरा की भक्ति प्रेमाश्रयी धारा का प्रतिनिधित्व करती है। इसलिए उनसे प्रेरणा लेने की कुछ सीमाएं भी हैं।
 
मीरा कृष्ण के लिए अपने प्रेम के लिए सरल भाव से सारी दुनिया का विरोध भी झेलती रहीं और दूसरी तरफ कुल, मानमर्यादा, पितृसत्ता, वर्गभेद की बेड़ियों को तोड़ती भी रहीं। इसमें जहाँ भक्ति में निहित विद्रोह प्रदर्शित होता है वहीं भक्ति पर सामाजिक विद्रोह का आश्रय भी सामने आता है। इतिहास में जब भी स्त्रियों ने धर्म का सहारा लेकर समाज और समय के विरुद्ध जाकर कुछ किया है तो लोगों ने उनके आध्यात्मिक रूप पर अधिक ज़ोर दिया है, कभीकभी इस हद तक कि उनका सामाजिक पक्ष कमज़ोर पड़ जाता है। मीरा को याद करने में हमेशा इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि भले ही वैयक्तिक और व्यक्तिगत रूप से दिए गए, परंतु हम उनके सामाजिक योगदान को प्रबलता से उभारें।         

 

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