ऐन्टोन चेखोव की कहानियों का प्रिज़्म समूह द्वारा मंचन-फिज़िकल ह्युमर का सफल उपयोग
फिज़िकल कॉमेडी यानी शारीरिक हास्य, हास्य अभिनय का एक महत्वपूर्ण अंग है। पर सभी कलाकार इस प्रकार के अभिनय को सहजता और असरदार तरीके से निभा नहीं पाते हैं। शरीर की भाव-भंगिमाओं और क्रियाओं से ऐसा माहौल बनाना कि कहानी भी कही जा सके और हास्य भी उत्पन्न हो सके, यह कम ही कलाकारों के बस की बात होती है। कुछ विफल होकर मंच पर अनावश्यक रूप से कहानी में उलझन पैदा कर देते हैं तो कुछ अति कर अभिनय को फूहड़ बना देते हैं। पर बीते शनिवार को दिल्ली के प्रिज़्म नाट्य समूह ने आगरा के सूरसदन प्रेक्षागृह में ऐन्टोन चेखोव की तीन लघु-कथाओं पर आधारित नाटिकाओं के मंचन में फिज़िकल हास्य का एक सफल उदाहरण प्रस्तुत किया।
मंच की सज्जा मिनिमलिस्ट यानि कम वस्तुओं से की गई थी। तीनों मंचन प्राय: मंच के एक भाग में ही हुए। समय की क्लासिकल युनिटी के सिद्धांत पर आधारित, अर्थात जहाँ पूरा नाटक एक ही समयकाल में घटित होता है, ये सभी मंचन एक ही समयकाल में घटित हुए जिसमें स्थान के आभास के लिए प्रकाश एवं ध्वनि का प्रयोग सराहनीय था।
तीनों ही कहानियों में कुछ मुख्य समानताएँ थीं जो कि ऐन्टोन चेखोव की विशिष्ट लेखन शैली की झलक प्रस्तुत करती थीं। जहाँ तीनों ही कहानियाँ हास्य प्रदान थीं तीनों में ही हास्य किसी एक किरदार की पीड़ा, (शारीरिक अथवा मानसिक), द्वारा उत्पन्न हो रहा था। तीनों ही कहानियों का आधार विचित्र था यानी इनकी परिस्थितियाँ असामान्य थीं और कुछ मायनों में अविश्वसनीय भी। हालांकि तीनों ही कहानियों में एक पात्र ऐसा था जो इन असामान्य और विचित्र प्रसंगों में आरम्भ में अविश्वास जताने के बाद, इनके साथ तालमेल बिठाने का प्रयास करने लगता था।
मंचन के दृष्टिकोण से बात करें तो तीनों ही कहानियों में हास्य उत्पन्न करने के लिए एक प्रसंग ज़िम्मेदार था जो कि बार-बार दोहराया जा रहा था और उसी प्रसंग से सामंजस्य बिठाना किरदारों की चुनौती थी। ऐसे में फिज़िकल ह्यूमर का प्रयोग भी चुनौतीपूर्ण था क्योंकि उन्हीं क्रियाओं और भाव-भंगिमाओं को दोहराकर बार-बार दर्शकों को हँसाना और साथ ही कहानी को आगे बढ़ाना कलाकारों के लिए आसान कार्य नहीं था। फिर भी अपनी ऊर्जा और प्रवीणता द्वारा सभी कलाकारों ने इस उद्देश्य को सिद्ध किया।
पहली कहानी में जहाँ पर-पीड़ा से मनोरंजन प्राप्त करने की प्रवृत्ति पर कटाक्ष किया गया वहीं दूसरी कहानी में मंच पर प्रस्तुत कलाकार की पीड़ा से होने वाले दर्शकों के मनोरंजन द्वारा पहली कहानी के फलसफे को स्वयं दर्शकों पर ही स्थानान्तरित कर दिया गया। तीसरी कहानी ‘ऐब्सर्ड ह्युमर’ यानी विचित्र हास्य पर आधारित थी जिसमें आधुनिक अफसरशाही के तंत्र में आम लोगों की स्थिति की विचित्रता पर टिप्पणी की गई। ऐसे में हास्य प्रधान नाटक होने के बावजूद तीनों ही कहानियों में एक वैचारिक पक्ष भी मौजूद था।
विकास बहरी के निर्देशन में हुए इस मंचन द्वारा चेखोव जैसे पेचीदा लेखक की क्लिष्ट कहानियों से शहर के दर्शक रूबरू हुए। यह मंचन रंगलोक सांस्कृतिक संस्थान और शारदा शैक्षणिक समूह के संयुक्त सौजन्य से किया गया।
निबंध लेखन उस गद्य रचना को कहते हैं जिसमें एक सीमित आकार के भीतर किसी एक विषय का वर्णन या प्रतिपादन एक विशेष निजीपन, स्वच्छन्दता, सजीवता, संगति एवं सुसम्बद्धता के साथ किया जाता है।
The play mazaq is a copy of famous play called chekhov ki duniya by ranjit kapoor. Just by changing the names and few twists, people are cheating the author from last 2 decades, but still ranjit kapoor’s play is running from 1991..and just imagine the impact of original that people still copying it and earning articles.
People organising these events are also supporting the cheating in a way.