उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित रंगकर्मी डिम्पी मिश्रा से बातचीत
हाल ही में डिम्पी मिश्रा को वर्ष 2018 के लिए नाट्य निर्देशन की विधा में उनके योगदान के लिए उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी द्वारा सम्मान मिलने की घोषणा हुई है। पिछले लगभग दस वर्षों से रंगलोक सांस्कृतिक संस्थान, नाट्य समूह का आगरा शहर में संचालन कर रहे डिम्पी जी ने हाल ही में रंगलोक के नाम से ही एक प्रदर्शन कला अकादमी की शहर में स्थापना की है जिसमें नाट्य कला, संगीत एवं नृत्य का प्रशिक्षण दिया जाता है। साथ ही कुछ ही दिन पहले उन्होंने मथुरा में बृज भाषा में बनी एक फिल्म की शूटिंग समाप्त की है जिसमें वह राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता प्रकाश झा के साथ एक अहम भूमिका में नज़र आ रहे हैं। प्रकाश जी इस फिल्म में पहली बार अभिनय कर रहे हैं। प्रकाश झा और डिम्पी मिश्रा इस फिल्म में दो निम्न वर्गीय कामगारों की भूमिका अदा कर रहे हैं। उनकी इन उपलब्धियों और हाल ही में मिले सम्मान के बारे में डिम्पी मिश्रा से लंबी बातचीत हुई। पेश हैं उसके कुछ अंश-
आपको बहुत बहुत बधाइयाँ इस पुरस्कार के लिए। वर्तमान समय में आपके लिए, आगरा के परिप्रेक्ष्य में और आप जो काम खुद करते आ रहे हैं, उसके लिए इस पुरस्कार के आपके लिए क्या मायने हैं?
बहुत धन्यवाद आपका! ये जो पुरस्कार है, यह मेरे लिए बहुत-बहुत मायने रखता है क्योंकि जिस उम्र में मुझे यह सम्मान मिला है, उस उम्र के बाद मुझे लगता है कि मेरी काफी ज़िन्दगी बाकी है। और मैं हमेशा यह सोचता था कि ये सम्मान लोगों को साठ-पैंसठ या सत्तर की उम्र में दिया जाता है। जिसके बाद वो उस सम्मान की प्रेरणा के कारण कुछ करने के लायक नहीं रहते (हँसते हुए)। हालांकि मैंने ये सोच के कभी काम नहीं किया कि मुझे इसके लिए कोई सम्मान मिलना चाहिए। मुझे मेरे पैशन और कर्तव्य के कारण इस काम को करने का मन किया है। इसके साथ मुझे ईमानदारी से यह सम्मान मिलना, ये ज़रूर मेरे मेरे मकसद के लिए और ज़्यादा शिद्दत और समर्पण के साथ ये काम करने के मेरे पैशन में बहुत इज़ाफा करता है
आगरा में रहते हुए पिछले लगभग एक दशक से आप नाटक कर रहे हैं। आगरा के मद्देनज़र आप इस सम्मान का इस शहर के लिए महत्व कैसे आंकते हैं,?
अभी क्योंकी 2009 से अब तक के पुरस्कारों की घोषणा हुई है तो पता लगा कि 2015 के लिए केशव प्रसाद सिंह को भी ये सम्मान मिला है। तो मेरे विचार से आगरा और बल्कि पुरा पश्चिमी उत्तर प्रदेश, सांस्कृतिक परिदृश्य से सरकार की तरफ से हमेशा अछूता रहा है। पिछली सरकारों या इस सरकार की बात करें तो लखनऊ के क्षेत्र यानी अवध, या फिर पूर्वी उत्तर प्रदेश कहना सही होगा, यहाँ ज़रूर सरकार की थोड़ी बहुत नज़र है। कुछ उनका झुकाव है सांस्कृतिक गतिविधियों के प्रति। और उसके बिल्कुल विपरीत पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे आगरा, अलीगढ़, फिरोज़ाबाद, मथुरा आदि, इस पूरी पट्टी पर सरकार का कोई सांस्कृतिक रुझान नहीं है और ना ही किसी प्रकार की सांस्कृतिक योजना या मदद इस जगह पर लागू की जा रही है। ऐसे माहौल में हमने इस शहर में दस साल देकर रंगमंच को प्रादेशिक स्तर पर एक पहचान दिलाई है कि आगरा में भी थिएटर हो रहा है। पूरे देश भर से बहुत नामी (नाट्य) समूह आगरा तशरीफ ला रहे हैं, तो निश्चित तौर पर पूरे प्रदेश में आगरा का नाम एक सांस्कृतिक पटल पर नज़र आया। और इसके बाद यह सम्मान मिला तो इसके बाद मुझे लगता है कि निश्चित तौर पर सरकार और देश भर के सांस्कृतिक संगठनों की नज़र इस शहर पर पड़ेगी और वे हमारे शहर को उतनी ही तवज्जो देंगे।
नाट्यकला को लेकर आपके काम द्वारा एक गतिशीलता बनी। इस गतिशीलता और इस सम्मान का यहाँ के नाटक के परिदृश्य पर, यहाँ के कलाकारों और रंगमंचीय गतिविधियों पर किस प्रकार के प्रभाव की उम्मीद आप रखते हैं?
सम्मान से किस तरह का फर्क पड़ेगा ये तो मैं अभी कह नहीं सकता क्योंकि इस सम्मान की घोषणा को अधिक समय नहीं बीता है। उसके पहले के हमारे काम की गतिशीलता का एक प्रभाव को हमने देखा। लगातार दर्शक हमसे जुड़े। दर्शकों ने हमारी (प्रस्तुतियों के लिए) टिकट लेने शुरु किए जो कि बहुत कम राशि की होती है, पर फिर भी 50 या 100 रुपए दर्शकों के लिए खर्च करना आगरा शहर में बहुत बड़ी बात है। और ऐसा इसलिए नहीं कि उनके पास पैसा है नहीं, बल्कि इसलिए कि नाटक जैसी चीज़ पर पैसे खर्च करना उनको बेजा लगता था, फिजूलखर्ची करना लगता था। उन्हें लगता था कि 50 या 100 रुपए के लायक गुणवत्ता उन्हें नहीं मिलेगी। पर जब हमने ये मुहिम शुरु की सन् 2010 में आगरा आकर और तब से लगातार हम ये काम करते आए, जो दर्शक पहले हमारी गुज़ारिश पर मुफ्त में हमारा नाटक देखने आया, अगली बार जब हमने उससे कहा कि हम बहुत मेहनत करते हैं, क्या आप हमारा एक सो 100 या 50 रुपए देकर देखने आ सकते हैं, तो उसने बहुत खुशी से कुबूल किया। इस तरह से परिदृश्य बदला और गतिशीलता आई है और आज 700-800 दर्शक हमारे बने हैं जो हर महीने हमारा एक नाटक देखने के लिए आते हैं। निश्चित तौर पर उनसे जुड़े हुए लोग जिनके पास वे हमारे नाटकों की सूचना भेजते हैं उनको शायद अभी भी ये ना लगता हो कि ये नाटक उनके लिए ज़रूरी हैं तो कहीं ना कहीं इस सम्मान के बारे में सुनकर उन्हें लग सकता है कि ये कुछ तो अलग और महत्वपूर्ण चीज़ है। उम्मीद है कि अगर ये विचार उनके दिमाग में आए तो हम और लोगों को आगरा आमंत्रित कर पाएँगे।
आगरा में रहते हुए और यहाँ काम करते हुए आपको यह सम्मान मिला जबकि कई लोग जो कहीं और नाटक में काम कर रहे थे पर क्योंकि उनकी जड़ें उत्तर प्रदेश से हैं इसलिए उन्हें ये सम्मान मिला। क्या आगरा में काम करते हुए इस सम्मान को मिलने को आप किसी खास नज़रिए से देखते हैं?
देखिए यह बहुत खूबसूरत सवाल है। उत्तर प्रदेश के हर शहर की ये विडंबना है। मुझसे भी लोग ये ज़रूर पूछते थे कि तुम यहाँ क्यों रहते हो, यहाँ क्या मिलेगा तुम्हें। तुम मुंबई या दिल्ली क्यों नहीं चले जाते। तो ये मुझे लगता है एक करारा जवाब है। आगरा में रहते हुए, आगरा में ही काम करते हुए मुझे जो ये सम्मान मिला है, ये उस चयन समीति की भी तारीफ है जिसने बड़े धैर्य के साथ मेरे काम को तवज्जो और इज़्ज़त दी और यह सम्मान मुझे यहाँ रहते हुए मिला। तो ज़ाहिर सी बात है कि बाकी बच्चों और नौजवानों को भी महसूस होगा कि अगर इन्हें यहाँ रहते हुए यह सब मिल रहा है तो हमें क्यों नहीं। तो उनकी यह उम्मीद भी बढ़ती है। यह एक विडम्बना है कि जो नौजवान हमसे प्रशिक्षण लेते हैं वो शहर लौटकर नहीं आते हैं क्योंकि आज तक हम वो माहौल कहीं पर भी नहीं दे पाए हैं। ये पूरे उत्तर भारत की विडम्बना है कि हम सांस्कृतिक क्षेत्र में अपने नौजवानों को आज तक रोज़गार नहीं दे पाए हैं। ना तो विद्यालयों के पास वो नीति है जिसके तहत वो बच्चों को नाटक का प्रशिक्षण दें, ना हमारे पास इतनी रैपर्टरी कंपनी हैं और ना सरकार की तरफ से वो मदद है कि हम नौजवानों को रोज़गार दे सकें। फिलहाल ना चाहते हुए भी लोग मुंबई और दिल्ली की तरफ रुख करते हैं, जहाँ रोज़गार है।
जैसा कि आपने कहा कि पिछले एक दशक में आगरा के दर्शकों की संस्कृति और देखने के नज़रिए में भी बदलाव आया है। तो अब इस सम्मान के साथ आपको लगता है कि और दर्शकों का आपके और रंगमंच के प्रति और ध्यान आकर्षित हुआ है? क्या आपके अनुसार इस सम्मान का दर्शकों पर कोई प्रभाव पड़ेगा?
अवश्य पड़ेगा। और इस बात का सबूत यह है कि जब परसों मुझे यह सम्मान मिलने की घोषणा हुई, उसके बाद से जो मेरे पास संदेश आए शुभकामनाओं के मुझे लगता है कि वे संदेश सिर्फ औपचारिकता के लिए नहीं थे। सैंकड़ों ऐसे संदेश हैं जिन्हें पढ़कर मुझे लगा कि हाँ मैंने मेहनत की है और यह मेहनत सिर्फ मेरी नहीं है। इस मेहनत में आगरा शहर के वो तमाम लोग शामिल हैं, जो नाटक से लगातार जुड़े रहे। जिन्होंने दर्शक के रूप में अपना योगदान दिया। आगरा के ऐसे कई बुज़ुर्ग जिन्होंने शुरुआत से मेरा साथ दिया चाहे वह नाटक के लिए सहुलियतें जुटाना हो या नाटक की टीम को खाना खिलाना हो (हँसते हुए) या अपने घर का फर्नीचर देने के लिए हो, योगदान ज़रूर मायने रखता है। मेरा पूरा परिवार और आगरा शहर के नाटक से जुड़ा पूरा परिवार ये सब शामिल हैं उसमें।
Huge credit goes to Dimpy ji for drawing people like us to the theatre. We look forward to the plays presented by his group 🙂