शीरोज़ हैंगऑउट- अपनी आवाज़ की पहचान

स्त्रोत: शीरोज़ हैंगऑउट
 
हिन्दी फिल्म “किनारा” का बेहद अर्थपूर्ण और लोकप्रिय गाना जिसे प्रसिद्ध गीतकार गुलज़ार ने लिखा है ज़िन्दगी के फलसफे को खूबसूरती से बयान करता है। यह गीत है “नाम गुम जाएगा…”। इसकी पहली चार पंक्तियों में ही गहरी अस्तित्ववादी सोच दिखाई देती है।
 
“नाम गुम जाएगा,
चेहरा ये बदल जाएगा,
मेरी आवाज़ ही पहचान है,
गर याद रहे”
 
यहाँ इन्सान की आवाज़ का अभिप्राय उसके शाब्दिक अर्थ से नहीं बल्कि उसके मार्मिक संदर्भ से निकाला जाना चाहिए। इन्सान की आवाज़ है उसके विचार, सोच और भावनाओं का संसार जिससे उसके अस्तित्व की पहचान होती है।
 
इस मर्म को असली मायनों में जी रहा है आगरा स्थित “शीरोज़ हैंगाआउट”- एक ऐसा कैफ़े जिसे तेज़ाबी हमले झेल चुकीं कुछ साहसी महिलाएँ पिछले एक साल से भी ज़्यादा समय से चला रही हैं। दिल्ली स्थित “छाँव फ़ाउन्डेशन” की पहल से उपजा यह कैफ़े तेज़ाबी हमले को झेल चुकीं महिलाओं को समाज की मुख्यधारा से पुन: जोड़ने का काम करता है और आमतौर पर जिस प्रकार हमारे समाज में किसी हमले या अत्याचार से पीड़ित व्यक्ति को ही उस पर हुए प्रहार के लिए ज़िम्मेदार ठहराए जाने की सोच व्यापक है, उसे खत्म करने का प्रयास करता है।


तेज़ाबी हमला ना सिर्फ इन्सान की त्वचा पर प्रहार करता है, पर साथ ही उसके महत्वपूर्ण शारीरिक अंगों पर भी घात करता है। पर सबसे घातक होता है इससे होने वाला मानसिक आघात, जो इसे झेल चुके इन्सान के मन पर पीड़ा और सदमे की छाप हमेशा के लिए छोड़ सकता है। ऐसे में समाज की कुंठित मानसिकता से ग्रस्त लोग पीड़ितों को उन पर हुए हमलों के लिए स्वयं ज़िम्मेदार ठहराने से नहीं चूकते या फिर (भले ही किसी बुरी मंशा से नहीं) उन्हें सिर्फ़ एक पीड़ित के तौर पर ही देखते हुए उनकी पहचान को एक पीड़ित तक सीमित कर देते हैं।

 
इन दोनों ही प्रवृत्तियों को नकारते हुए यह कैफ़े समाज में हिंसा और साहस को लेकर एक नया संवाद स्थापित कर रहा है और इन महिलाओं की आवाज़ को उनकी पहचान दिला रहा है जो किसी और की आवाज़ की मौहताज नही है।
 
महिलाओं पर तेजाबी हमलों के अधिकाँश मामलों में यही देखा गया है कि पुरुषों द्वारा महिलाओं के प्रति अवांछित कामना को नकारे जाने पर महिलाओं को सबक सिखाने के लिए तेजाबी हमले का प्रयोग किया जाता है। पुरुष के अहम और हिंसा के बीच इतने गहरे तालमेल का शायद ही कोई अन्य उदाहरण देखने को मिलता हो।
 
ऐसे में शीरोज़ जैसे उद्यम को चलाना इस हिंसा को अपने अदम्य साहस से जवाब देने जैसा ही है। सबसे खास है इस साहस के पीछे की सरलता और सोच। एक लाल दीवार पर बने शेल्फ़ पर सजीं देश विदेश की किताबें, एक आत्मीय से माहौल में डाइनिंग टेबल की सेटिंग, खुद खाना बनाने के लिए “सेल्फ़ कुकिंग” सेक्शन तो खास हैं ही पर सबसे अलग बात है कि आप अपनी मर्ज़ी से अपने जलपान की कीमत अदा कर सकते हैं। रुपए-पैसे से बंधी इस दुनिया में दौलत की हिंसा को भी नकार रहा है यह अद्भुत कैफ़े जहाँ वाणिज्य से ज़्यादा महत्वपूर्ण है इंसान का इंसान से स्थापित होता संवाद।
शीरोज़-आगरा को संचालित करने वालीं ॠतु अपने अनुभव से एक पुरुष-महिला की जोड़ी के बारे में बताती हैं जो उनके कैफे के दरवाज़े तक आकर, अंदर आने की हिम्मत नहीं कर पाए और बाहर से ही वापस लौट गए। इसी असहजता और हिचक को मिटाना शीरोज़ का फलसफा है जहाँ तेजाबी हमले को झेल चुकी महिलाओं को मुख्यधारा से जोड़ा जा सके। हिंसा के खिलाफ इतना साहसी और जीवट प्रतिकार शायद ही कभी देखा गया होगा।
कुछ ही समय में इस उद्यम की जड़ें इतनी गहरी हो चुकी हैं कि आगरा के बाद, हाल ही में अंतराष्ट्रीय महिला दिवस पर लखनऊ में इसकी दूसरी शाखा खोली जा चुकी है और जल्द ही कई अन्य शहरों में इसके विस्तार की तैयारी है। शीरोज़ का उद्देश्य उन महिलाओं तक पहुँचना है जो तेजाबी हमले झेल चुकी हैं और मौजूदा सामाजिक परिवेश के चलते अपनी घर की चार दिवारी में खुद को सीमित कर चुकी हैं। शीरोज़ द्वारा उन्हें बाहर की दुनिया में एक बार फिर से जुड़ने और मुख्यधारा में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करा जा रहा है।
प्रसिद्ध फ्रांसिसी समाज शास्त्री- मिशेल फ़ुको ने कहा है कि ताकत सिर्फ वह नही होती जिसका उत्पीड़क, दमन और उत्पीड़न के लिए इस्तेमाल करता है, बल्कि वह भी ताकत है जिसका इस्तेमाल अपने ऊपर दमन झेलने वाला मनुष्य उस ताकत का विरोध करने के लिए करता है। यानि दु:स्साहस के विरोध में भी साहस प्रकट होता है। शीरोज़ इस बात की नुमाइन्दगी करता है।
समाज में एक संवाद स्थापित कर साहस का परिचय देने वाली ये शीरोज़, अपनी आवाज़ को अपनी पहचान बना रही हैं और हिंसा पर जीवन की विजय का संदेश दे रही हैं। जिस गीत से इस लेख की शुरुआत हुई थी, उसी की एक पंक्ति है- “दिन ढले जहाँ रात पास हो, ज़िंदगी की लौ ऊँची कर चलो…”। गुलज़ार ने यह गीत इस संदर्भ में नहीं लिखा है पर शीरोज़ के साहस को सलाम करने के लिए इस गीत की यह व्याख्या काफी उप्युक्त है।
  

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *