Author: सुमित चतुर्वेदी

कला, साहित्य और संस्कृतिटेलिविजननिबंध

धारावाहिक ‘मिर्ज़ा ग़ालिब’ (1988): यथार्थ, यथार्थवाद और संवेदना के बीच तालमेल ।

  भारतीय टेलिविज़न के मौजूदा स्वरूप को देखकर यह अंदाज़ा नही लगाया जा सकता है कि कभी धारावाहिकों और टीवी

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कला, साहित्य और संस्कृतिटेलिविजननिबंध

कहानी ‘धारावाहिकों’ की।

प्रस्तावना: धारावाहिक दूरसंचार का एक महत्वपूर्ण और संभावनाओं से भरा माध्यम है पर एक गहन शोध और विचार के बिना

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कला, साहित्य और संस्कृतिनिबंध

लोक संस्कृति का जाल- शादी के गीत।

प्रस्तावना: यह कोई बहुत उत्कृष्ट या असाधारण लेख नही है। अपनी ही ज़िन्दगी में हुए कुछ अनुभवों से गुज़रकर कैसे

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निबंधयात्रा, खेल और फुर्सत

आगरा में शौपिंग मौल्स की असफलता- एक सांस्कृतिक चुनौती

प्रस्तावना: शौपिंग मौल्स भले ही बड़े शहरों में आधुनिक उपभोक्ता की पहली पसंद बन चुके हों पर आगरा में उनका

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