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ताज महोत्सव का आगरा के सामाजिक-सांस्कृतिक परिदृश्य के लिए महत्व

अगर आप आगरा शहर के पुराने बाशिंदे हैं और यदि आप इस शहर की सबसे पुराने और स्थापित सामाजिक-सांस्कृतिक परंपराओं में से एक, ताज महोत्सव से वाकिफ रहे हैं तो मुश्किल ही है कि इस महोत्सव में हुए परिवर्तनों पर आपका ध्यान ना गया हो। बहुत साल पहले ताज महोत्सव ताज महल से लगभग आधे किलोमीटर दूर बने भव्य शिल्पग्राम में आयोजित होना शुरु हुआ जहाँ देश भर के विभिन्न प्रांतों से आए शिल्पी अपनी-अपनी जगहों की विशेष कृतियों का प्रदर्शन और बिक्री किया करते थे। साथ ही शिल्पग्राम के प्रांगण में बने नूरजहाँ प्रेक्षागृह में और मुक्ताकाशीय मंच पर मुशायरे तथा अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता था। शिल्पग्राम की पार्किंग में बड़े-छोटे झूले भी सजाए जाते थे, जिनका रोमांच और आकर्षण सभी आयु-वर्ग के लोगों को इनकी तरफ खींच लाता था।

कई सालों में यहाँ बहुत कुछ बदल गया। ताज महोत्सव का रूप और स्वरूप दोनों ही बदले। शिल्पग्राम तक सीमित इस आयोजन ने शहर में धीरे-धीरे कई जगहों पर अपने पैर पसारे। आज के समय में इस महोत्सव के अंतर्गत शिल्पग्राम के साथ ही, सूरसदन, सदर बाज़ार, पालीवाल पार्क और शहर के कई महत्वपूर्ण स्थानों में विभिन्न प्रकार के आयोजन किए जाते हैं। कुछ वर्ष पूर्व आगरा किले में भी महान शास्त्रीय गायिका परवीन सुल्ताना के गायन का एक भव्य और अत्यंत खूबसूरत कॉन्सर्ट का आयोजन भी किया गया था। इस वर्ष महोत्सव के अंतर्गत खेल प्रतियोगिताओं का भी आयोजन किया गया है। पिछले कई वर्षों में ताज महोत्सव ने सच में ही पूरे शहर के महोत्सव का रूप अख्तियार कर लिया है।



फिर भी शिल्पग्राम इस महोत्सव का केन्द्र है और हो भी क्यों ना! आखिर इतने सालों तक यह जगह इस महोत्सव की पहचान के रूप में स्थापित रही है। शिल्पग्राम तक पहुँचने वाली फतेहाबाद रोड से होकर गुज़रने में भी आपको पिछले कई दशकों में भारी बदलाव देखने को मिलेगा। कई साल पहले यहाँ से होकर गुज़रने वाले लोगों को प्रमुख इमारतों के नाम पर मुगल शेरेटन होटल और बसावट के नाम पर बसई कला नामक गाँव देखने को मिलता था। बाकी सब वीराना ही था और ताज महोत्सव तक पहुँचते-पहुँचते आपको लगता था कि आप शहर से बाहर कहीं पहुँच गए हैं। पिछले एक ही दशक में यहाँ काफी रौनक हो गई है। कई नए होटल, कैफे, दुकानें, रेस्टोरेंट और ना जाने कितने तरह के उद्यम खुल गए हैं। आगरा शहर के बाज़ारीकरण के पैमाने पर आधुनिक और विकसित होने की अगर कोई मिसाल दी जा सकती है तो वह यह सड़क है जहाँ अब दिन के कई पहरों पर बेशकीमती गाड़ियों का तांता लगा देखने को मिल जाता है और ट्रैफिक जाम भी। बसई कला का गाँव भी अब भारी भरकम दुकानों में दब सा गया है और इस गाँव का भी शहरीकरण हो चुका है।

ताज महोत्सव तक पहुँचने वाली इस सड़क में साल दर साल होते हुए इन बदलावों को जिन लोगों ने भी देखा और समझा होगा वह अंतत: शिल्पग्राम पहुँच कर वही पुराने स्वरूप में लगे इस वृहद हाट बाज़ार को देखकर, जिसमें अभी भी देश के कई हिस्सों से आए शिल्पी अपना सामान लोगों के साथ मोलभाव कर बेच रहे होते हैं, महसूस करते होंगे कि कुछ चीजें हैं जो शहर की सांस्कृतिक-सामाजिक विरासत को संजोए हुए है। क्योंकि छोटे स्तर के शिल्पी और दुकानदारों से सजा बाज़ार भी हमारी सांस्कृतिक धरोहर ही है। जब आज के माहौल में भी जबकि आगरा शहर में नफरत के माहौल को हवा दी जा रही है आप कई सालों से आने वाले कश्मीरी शौल और कपड़े के दुकानदारों को इत्मिनान से अपनी दुकानों में सामान बेचते और अपनी मधुर मुस्कुराहटों से लोगों का मन मोहते देखते हैं तो कुछ क्षणों के लिए ही सही थोड़ा सुकून मिल जाता है।

खास बात यह है कि ताज महोत्सव में यदि कुछ बदलाव भी हुए हैं तो वे भी शहर की सांस्कृतिक-सामाजिक सेहत के लिए लाभदायक ही रहे हैं। चाहे शहर के बेहतरीन रंगमंचीय समूह- रंगलोक सांस्कृतिक संस्थान से मुखातिब होना या फिर संगीत और कला की बेहतरीन शख्सियतों से रूबरू हो पाना या फिर पिछले कुछ वर्षों से लगातार लगने वाली थोक में किताबें बेचने वाली दुकान ही क्यों ना हो, ताज महोत्सव का बढ़ता दायरा यहाँ के शहरवासियों को इस बात का एहसास कराता है कि शहर का बढ़ना सिर्फ नई और ऊँची इमारतों, दुकानों और होटलों से ही नहीं है बल्कि नए अनुभवों से साक्षात्कार करने के मौकों से भी है।

ताज महोत्सव आज की उन सभी सामाजिक-राजनीतिक प्रवृत्तियों के बावजूद अपना वैसा स्वरूप बनाए हुए है जो इन प्रवृत्तियों के बिल्कुल उलट हैं। आज के विशुद्ध मुनाफा-प्रेरित नव-उदारवादी बाज़ारीकरण, सांप्रादायिक ध्रुवीकरण और बहुलतावाद के विरुद्ध छिड़ी राजनीतिक मुहिम के समय में ताज महोत्सव राज्य-प्रायोजित छोटे स्तर के शिल्पियों को स्थान प्रदान करने वाला, समावेशी आयोजन है जिसमें बौद्धिक और सांस्कृतिक गतिविधियों को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। ऐसे में इस आयोजन का यह स्वरूप बनाए रखना इस महोत्सव के लिए ही नहीं बल्कि वर्तमान सामाजिक-सांस्कृतिक परिदृश्य के लिए भी आवश्यक है।

3 thoughts on “ताज महोत्सव का आगरा के सामाजिक-सांस्कृतिक परिदृश्य के लिए महत्व

  • ताज महोत्सव पर तुम्हारा लेख पढ़ा सुमित। बहुत अच्छा विश्लेषण किया है । ऐसे ही लिखते रहो । शुभाशीष

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  • Swati Chaturvedi

    Fond memories of Taj mahotsav came back on reading your article. Good to know that it has grown better and still retaining the old grandeur. Very well written.

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    • सुमित चतुर्वेदी

      Thanks a lot! The inclusion of cultural events such as plays, musical performances etc have really added to its flavour. It remains one of the few secular- cultural spaces in the city. Hope it maintains its form.

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