मध्यमवर्गीय सिनेमा की हिन्दी सिनेमा पर अमिट छाप: ‘चुपके चुपके’ पर एक टिप्पणी
स्त्रोत साठ के दशक के उत्तरार्ध में हिन्दी सिनेमा में बहुत से नए परिवर्तन देखने को मिल रहे थे। भारतीय
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Read Moreवह दौर बहुत मुश्किल रहा होगा। गर्म हवा फिल्म देखकर यही महसूस हुआ। कई घर उजड़े होंगे, कई दिल टूटे
Read Moreफ़िल्मों की साहित्य पर निर्भरता हमेशा से रही है। बीसवीं सदी के अंत में जब फिल्मों के माध्यम का उदय
Read Moreहिंदी सिनेमा का साहित्य से रिश्ता बहुत गहरा तो नही है पर शेक्सपियर की कहानियों को हिंदी निर्देशकों ने बहुत
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