पीपुल्स लाइब्रेरिया- मात्र पुस्तकालय नहीं पर एक बौद्धिक-सांस्कृतिक स्पेस
साभार: पीपुल्स लाइब्रेरिया |
आगरा शहर में लगातार शुरु हो रहे नए बौद्धिक और सांस्कृतिक गतिविधियों और प्रयोगों में एक और नाम जुड़ गया है। यह है न्यू आगरा क्षेत्र के इंद्रपुरी कॉलोनी में स्थित ‘पीपुल्स लाइब्रेरिया’ नामक पुस्तकालय जो इसी वर्ष के जुलाई महीने में शुरु हुआ है।
डॉ विजय शर्मा और उनके कुछ साथियों द्वारा शुरु की गई इस लाइब्रेरी को एक विशुद्ध पुस्तकालय के रूप में देखना गलत होगा। विजय खुद कहते हैं कि उनका प्रयास एक ऐसी ‘स्पेस’ या जगह तैयार करना था जिसमें बेबाकी और खुलेपन से चर्चा–परिचर्चा और विचार–विमर्श हो सके। साथ ही उनका यह प्रयास है कि यह लाइब्रेरी सामाजिक–सांस्कृतिक गतिविधियों को बढ़ावा भी दे सके।
हालांकि किसी भी लाइब्रेरी की मूल आवश्यकता किताबें होती हैं। चाहे प्रमुख प्रकाशन समूह हों या फिर खुद अपने संग्रह से किताबें भेंट करने वाले लोग हों, पीपुल्स लाइब्रेरिया को किताबों की कोई कमी नहीं रहती है। किताबों के शौक रखने वाले किसी भी व्यक्ति को यहाँ अनेक विषयों पर ढेर सारी किताबों के विकल्प मिल सकते हैं।
पर जो बात पीपुल्स लाइब्रेरिया को अन्य पुस्तकालयों से अलग बनाती है वह है यहाँ का आत्मीयता और अनौपचारिकता से युक्त वातावरण। यहाँ किताबों से संवाद को महत्व तो मिलता ही है पर साथ ही परस्पर संवाद को भी ज़रूरी माना जाता है। इस संवाद के लिए आवश्यक है कि यहाँ आने वाले लोग, फिर चाहे वे पाठक–गण हों या फिर किसी चर्चा या अन्य कार्यक्रम में शिरकत करने वाले प्रतिभागी, एक सरल वातावरण का अनुभव करें और किसी भी संवाद में खुलकर भाग ले सकें। इसी के मद्देनज़र लाइब्रेरी की साज–सज्जा को भी आकर्षक, कलात्मक लेकिन आत्मीय रखा गया है।
आज के समय में किताबें एक मात्र संवाद का माध्यम नहीं रह गई हैं। पीपुल्स लाइब्रेरिया में इस बात का ध्यान रखा गया है। समय–समय पर यहाँ डॉक्युमेंट्री स्क्रीनिंग और उस पर चर्चा का आयोजन किया जाता रहता है। साथ ही कविता पाठ, पोस्टर बनाना, कविताओं की ऑडियो रिकॉर्डिंग और ऐसे ही कई कलात्मक प्रयोग यहाँ किए जाते रहते हैं।
लाइब्रेरी की इन विविध गतिविधियों में सबसे अधिक हिस्सेदारी कॉलेज के छात्र–छात्राओं की होती है। आज के समय में जहाँ युवा-वर्ग किताबों से निरन्तर दूर होता जा रहा है, पीपुल्स लाइब्रेरिया की यह कोशिश उन्हें कई रूपों में किताबों से जोड़ रही है। नाटकों, मंचन, कविता-पाठ जैसे आयोजनों से विजय की कोशिश रहती है कि आज के आधुनिक समय में किताबों के मर्म को एक द्विआयामी और सपाट रूप में समझने के बजाय एक बहुआयामी रूप में समझा जा सके। इस रूप में पाठकों को किताबों को समझने के लिए उनमें रचित दुनिया में उतरने का मौका मिल सकता है।
लाइब्रेरी और जनसाधारण में विचार–विमर्श की संस्कृति का गहरा रिश्ता रहा है। पढ़ा तो घर की चारदीवारी और निजता में भी जा सकता है। लाइब्रेरी और पुस्तकालय पढ़ने की इस क्रिया को सामूहिक और जनसाधारण क्षेत्र में ले आते हैं। हालांकि जैसा कि देखा गया है परंपरागत पुस्तकालय अपने अनुशासनात्मक ढांचे के कारण इस सामूहिक अनुभव को पुन: वैयक्तिक और व्यक्तिगत स्तर तक सीमित कर देते हैं। लाइब्रेरी की लोकतांत्रिक और सामूहिक आत्मा को बनाए रखने के लिए इन्हें और खुला और संवादात्मक बनाने की आवश्यकता है फिर चाहे क्यों ना लाइब्रेरी की परंपरागत परिभाषा का खंडन करने की आवश्यकता हो। पीपुल्स लाइब्रेरी इस प्रयोग में एक रोचक कदम है।
इससे भी अधिक महत्वपूर्ण है कि यह प्रयास आगरा शहर में किया जा रहा है। एक मध्यम स्तर पर विकसित शहर, आगरा वाणिज्यिक रूप से तेज़ी से बढ़ रहा है। बड़ी–बड़ी दुकानें, होटल और रेस्टोरेंट आदि से शहर पटा पड़ा है। पर फिर भी शहर में आर्थिक–सामाजिक असमानताएँ यथास्थिति हैं। उपलब्ध आर्थिक–सामाजिक विमर्श के अनुसार बढ़ते वाणिज्यीकरण और बाज़ारीकरण से असमानताओं के बढ़ने का खतरा रहता है, यदि इस विकास में सामाजिक–आर्थिक समानता का दृष्टिकोंण शामिल ना हो। यह दृष्टिकोंण बिना बौद्धिक और वैचारिक गतिविधियों के संभव नही है। पीपुल्स लाइब्रेरिया आगरा शहर में इसी कमी को बौद्धिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के मेल द्वारा दूर करने के प्रयास में एक कदम बन कर उभरा है।
“पीपुल्स लाइब्रेरिया” सप्ताह के सभी दिन दोपहर 2:00 बजे से शाम 7:00 बजे तक खुलता है।