ओपिनियन तंदूर फ़िल्म क्लब: गर्म हवा की दर्शक-समीक्षा
वह दौर बहुत मुश्किल रहा होगा। गर्म हवा फिल्म देखकर यही महसूस हुआ। कई घर उजड़े होंगे, कई दिल टूटे होंगे, कई पीढ़ियां व कई विरासतें फ़ना हुई होंगी। भाईचारे को विभाजन की नज़र लगी थी और इंसानियत कदम-कदम पर शर्मसार हुई थी।
आज़ादी के वक़्त हिन्दुस्तान व पाकिस्तान के विभाजन का असर उस समय के परिवारों, काम-काज और तो और घर की चार दीवारी में सिमटी औरतों पर बराबर रूप से हुआ था। लोगों का पारस्परिक विश्वास खत्म होने एवं लगातार विषम होती परिस्थितियों ने हर एक को सरहद के इस पार या उस पार रहने का निर्णय लेने को मजबूर कर दिया था।
रविवार की शाम ओपिनियन तंदूर द्वारा आयोजित Film Appreciation Club में गर्म हवा देखने के बाद हुए संवाद से ऐसे कई पहलु जानने को मिले जिनसे हम अब तक अवगत नहीं थे। इस फिल्म को बनाते वक़्त इस्तेमाल की गयी कैमरा तकनीक पर चर्चा हुई जिससे निर्देशक के हुनर का पता चलता है। इसके अलावा कैसे यह फिल्म, जो की कई दशकों पहले निर्मित हुई, आज भी तर्क-संगत है, इसका आभास हुआ। अपने हक़ों के लिए लड़ाई आज भी जारी है, धर्म-विशेष के साथ कई मौकों पर सौतेला व्यहवार आज भी होता है जो की दुखद है।
“ओपिनियन तंदूर” के इस कारवां में एक और उम्दा शाम अपने प्रिय साथियों के साथ बिताने का सुखद अवसर मिला।
-मुदित चतुर्वेदी
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