हिन्दी एक्शन-फंतासी कॉमिक उपसंस्कृति की यात्रा- इंद्रजाल से लेकर राज कॉमिक्स तक
एक्शन और फंतासी का मिलन एक बेहद शक्तिशाली सांस्कृतिक गठजोड़ है। और अक्सर यह सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण गठजोड़ उपभोक्तावाद के लिए भी बहुमूल्य हो जाता है। हैरी पॉर्टर की उपन्यास श्रंखला के लिए पूरे विश्व में दीवानगी को देख लीजिए या फिर अमेरिका की कॉमिक बुक इंडस्ट्री की आपार सफलता को ही, एक्शन और फंतासी की ताकत का अंदाज़ा आपको लग जाएगा। इस गठजोड़ से हमेशा एक उपसंस्कृति का जन्म होता है जिससे उपजे संसार या फिर बहु–संसारों में बच्चे और युवा रोमांच और आनंद तलाशते हैं।
क्योंकि यह उपसंस्कृति भाषा से निर्मित होती है, इसलिए अलग–अलग भाषाएँ और उनका सामाजिक संदर्भ इन उपसंस्कृतियों का स्वरूप निर्धारित करते हैं। हिन्दी भाषा में आधुनिक समय में पहला एक्शन और फंतासी का गठजोड़, हिन्दी साहित्य के पहले उपन्यासों में से एक, देवकी नंदन खतरी द्वारा रचित‘चंद्रकांता’ में देखा जा सकता है। तिलिस्म और एक्शन से भरपूर इस उपन्यास में कई ऐसे तत्व थे जिन्होंने इस रचनावली को उस समय में ही नहीं, बल्कि आगे के समय में भी लोगों के लिए रोचक और आकर्षक बनाए रखा।
हिन्दी कॉमिक बुक्स का संसार कभी बहुत समृद्ध या वृहद नहीं रहा, पर एक्शन और फंतासी में इसका कुछ योगदान तो रहा है। 1964 में इंद्रजाल कॉमिक्स से शुरु हुई हिन्दी कॉमिक बुक्स की कहानी, आज भी जारी है।
इंद्रजाल कॉमिक्स
1964 में इंद्रजाल कॉमिक्स का उदय हुआ टाइम्स ऑफ़ इंडिया की पहल के साथ। क्योंकि तब तक भारत में एक्शन और फंतासी पर आधारित स्वयं की कॉमिक संस्कृति नहीं थी, इसलिए इंद्रजाल कॉमिक्स की शुरुआत विदेशी कॉमिक्स हीरो की कहानियों को भारतीय पाठकों के लिए प्रस्तुत करने से हुई। इनके प्रकाशन के शुरु होते ही, ये कॉमिक्स लोकप्रियता के नए आयाम छूने लगीं। जो नायक सबसे सफल रहे वे थे फैंटम और मैंड्रेक। प्रसिद्ध लेखक, पत्रकार, चित्रकार, नाटककार और ऐसी कई अन्य प्रतिभाओं को अपने में समेटे हुए आबिद सूर्ती के द्वारा रचित भारतीय नायक‘बहादुर’ भी इंद्रजाल कॉमिक्स में शामिल किया गया। इस सफल प्रयोग की खास बात थी कि इन कॉमिक्स को भारत में मौजूद कई भाषाओं में पेश किया गया जैसे कि हिंदी, बंगाली आदि।
इंद्रजाल कॉमिक्स को भारतीय एक्शन कॉमिक्स परंपरा में अपने लिए एक विशिष्ट जगह बनाने में खासी दिक्कत नहीं हुई, क्योंकि यह अपने आप में इस क्षेत्र में एक नया प्रयोग था। इन्हें पढ़ने वालों से पूछें कि पहली बार कॉमिक बुक्स पढ़कर उनका अनुभव कैसा था, तो यही जवाब मिलता है कि “हम तो इन कहानियों में कहीं खो जाते थे”। कॉमिक बुक्स कहानी कहने का एक नया अंदाज़ लेकर आई थीं। बेहतरीन चित्रकारी के साथ पात्रों के बीच संवादों के माध्यम से और जब–तब अदृश्य कहानीकार के वर्णन द्वारा कहानी एक अलग रवानगी के साथ बढ़ती थी। इसके शौकीन पाठकों का रोमांच इस कदर था कि कई दशकों बाद भी उन्हें इन कॉमिक्स के पात्र, कथानक, किस्से और संवाद आज भी मुँह–ज़बानी याद हैं।
जहाँ अंग्रेज़ी भाषा के पाठकों के लिए, जो कि अधिकांशत: बड़े शहरों में मौजूद थे, कॉमिक बुक उपसंस्कृति का एक विविध और विस्तृत संसार मौजूद था, वहीं हिंदी पाठकों के लिए यह उपसंस्कृति नई और रोमांचक थी। इन शहरों में पाश्चात्य दुनिया की ये झलकियाँ भी नई बात थीं। 50 या60 पैसे के मूल्य से बिकने और मासिक से साप्ताहिक होने की शुरुआत के साथ इंद्रजाल का जाल ऐसा फैला कि ये कॉमिक्स एक्शन और फंतासी का एक स्तंभ बन गईं।
इन कॉमिक्स की सफलता के पीछे इनका वाणिज्यिक पहलू भी महत्वपूर्ण है। 1964 के समय में प्रिंट उद्योग के नाम पर भारत में अखबार और पत्रिकाओं का कारोबार अपने चरम पर था। राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर विभिन्न उत्पादनकर्ता इनके माध्यम से अपने विज्ञापन आम जनता तक पहुँचाते थे। एक्शन और फ़ंतासी की काल्पनिक दुनिया लिये हुए पर किसी मैगज़ीन के रूप में दिखने वाली और साप्ताहिक तौर पर प्रकाशित होने वाली ये कॉमिक्स एक माकूल स्थान प्रदान करती थीं नए, युवा वर्ग को आकर्षित करने वाले उत्पादों के लिए विज्ञापन प्रकाशित करने हेतु।
चाहे वह मशहूर कोल्ड ड्रिंक कैम्पा हो, या फिर लक्सर के स्केच पेन या फिर अमूल मिल्क चॉकलेट हो या जूतों की कंपनी बाटा, सभी विज्ञापन बच्चों और युवाओं को लुभाने के लिए तैयार किए जाते थे।
साथ ही टाइम्स ऑफ़ इंडिया जैसे स्थापित प्रिंट समूह की विशाल वितरण प्रणाली का भी इंद्रजाल कॉमिक्स को फायदा मिला, जिन्हें साप्ताहिक मैगज़ीन की भांति ही अखबार वाले घर पर देकर जाया करते थे और इनके पाठक इनका संग्रह भी किया करते थे।
इंद्रजाल कॉमिक्स की ढलान और राज कॉमिक्स का उदय
जहाँ 80 के दशक के उतरार्ध में इंद्रजाल कॉमिक्स का समापन हुआ वहीं इसी दशक के छँटे वर्ष में एक अन्य हिन्दी कॉमिक बुक कंपनी का उदय हुआ जो अपने अलग, मौलिक लेकिन कुछ हद तक प्रेरित किरदारों की जमात लेकर, इंद्रजाल द्वारा स्थापित एक्शन और फंतासी कॉमिक परंपरा को आगे ले जाने के लिए तैयार होने लगी। यह कंपनी थी ‘राज कॉमिक्स’।
दिल्ली के ‘सराय–सी एस डी एस’ के राज कॉमिक्स पर किए गए विशेष शोध में इस कंपनी की शुरुआत को लेकर बताया गया है कि इसके पीछे दिल्ली के तीन युवक– मनीष, संजय और मनोज गुप्ता की कॉमिक बुक्स के लिए दीवनगी थी। जहाँ इंद्रजाल कॉमिक्स में विदेशी नायक ही मौजूद थे, वहीं ये कॉमिक्स भारतीय मूल के किरदारों के लिए रची गईं। भारतीय फंतासी और एक्शन की विशिष्ट आवश्यकताओं को मद्देनज़र रखते हुए नागराज के किरदार का जन्म हुआ। खास बात यह थी कि ये कॉमिक्स हिन्दी में रचित थीं।
एक्शन और फंतासी कॉमिक्स को राज कॉमिक्स में अपना नया घर मिल गया था। 25 साल से भी अधिक समय में 5000 से अधिक संस्करण निकालना, वह भी सिर्फ हिन्दी भाषा में, अपने आप में इस कंपनी की एक बड़ी उपलब्धि मानी जाएगी। नागराज के अलावा, सुपर कमांडो ध्रुव, भोकाल, डोगा, शक्ति, परमाणु आदि के साथ, राज कॉमिक्स ने लगभग वैसी ही एक दुनिया बना ली थी, जैसे कि अमेरिका में मार्विल कॉमिक्स ने जस्टिस लीग के माध्यम से बनाई थी।
राज कॉमिक्स की शुरुआत भले ही इंद्रजाल कॉमिक्स से प्रेरणा लेकर हुई हो पर सभी तरह से यह उससे बिल्कुल अलग थी। पहली बात तो यह कि राज कॉमिक्स के पीछे किसी बड़े मीडिया हाउस का हाथ नहीं था। दूसरा यह कि ये अन्य भाषाओं में प्रकाशित नहीं होती थीं। राज कॉमिक्स की वितरण प्रणाली भी अलग थी। प्राय: इसके पाठक रेल्वे स्टेशन पर स्थित किताबों की दुकानों से इन्हें खरीदते थे। बल्कि यह भी कहा जा सकता है कि राज कॉमिक्स की बनाई उपसंस्कृति में रेल यात्रा का एक अहम स्थान है जहाँ बच्चों के लिए पूरी यात्रा, नागराज, ध्रुव आदि के कारनामों में गुज़र जाती थी। इसके अलावा राज कॉमिक्स में विज्ञापन ना पहले प्रदर्शित होते थे, और ना ही आज होते हैं।
यानि जिन वाणिज्यिक पहलूओं का इंद्रजाल कॉमिक्स को सहारा था, उनके ना होते हुए भी राज कॉमिक्स का ना सिर्फ गुज़ारा हुआ, बल्कि हालिया संस्करणों में बेहतर पृष्ट गुणवत्ता और ग्राफिक्स को देखकर पता चलता है कि इनमें निरन्तर सुधार भी हुआ। अब यह किताबें क्षेत्रीय बुक स्टोर–जैसे कि आगरा शहर में मॉडर्न बुक डिपो, में भी उपलब्ध हैं। एक ही भाषा में रचित इन कॉमिक्स का आज के समय में चलना, जबकि एक्शन–फंतासी कॉमिक वर्ग में विदेशी कंपनियाँ जैसे कि मार्विल और डी सी कॉमिक्स भारत में जगह बना चुकी हैं, एक खास उपलब्धि है। कहा जा सकता है कि हिन्दी एक्शन–फंतासी कॉमिक उपसंस्कृति को स्थापित करने और चलाए रखने में राज कॉमिक्स का एक अहम योगदान है।
प्रेरणा के स्त्रोत
जैसे कि पहले ही बताया गया, राज कॉमिक्स का एक उद्देश्य था भारतीय मूल के मौलिक किरदारों को खड़ा करना। पर ये सभी किरदार कहीं न कहीं दूसरे स्त्रोतों से प्रेरित थे। सराय–सी एस डी एस के शोध में पता चलता है कि नागराज का किरदार काफी हद तक विदेशी कॉमिक हीरो– स्पाइडर मैन से प्रेरित था। जहाँ स्पाइडर मैन अपनी कलाइयों से मकड़–जाल फेंकने की शक्ति रखता था, वहीं नागराज की कलाइयों से साँप निकलते थे। उसी प्रकार ध्रुव भले ही अपने आप में मौलिक कृति है, पर उसकी शुरुआती कहानी काफी हद तक बैटमैन से मिलती है, जिनमें दोनों के ही माता–पिता की उनके बचपन में हत्या हो जाती है और दोनों अपने शहरों को अपराध से बचाने में जुट जाते हैं।
निन्जा टर्टल्स नामक कॉमिक्स की तर्ज पर बाद में राज कॉमिक्स ने फाइटर टोड्स की श्रंखला भी निकाली। साथ ही कैट वुमन की तर्ज पर ध्रुव की दुनिया में रचित ब्लैक कैट और ऐसे ही कई अन्य किरदारों की प्रेरणा विदेशी कॉमिक नायक–नायिकाओं में ढूँढी जा सकती है।
पर इस प्रेरणा का एक और स्त्रोत भी है जो कि भारत में एक्शन–फंतासी की उपसंस्कृति के आधार का एक बड़ा हिस्सा है। यह प्रेरणा है भारतीय पौराणिक कथाएँ। नागराज का शिव के कंठ में लिपटे सर्प से उद्गम का वाक्या हो या शक्ति का काली के किरदार से जुड़ा होना, राज कॉमिक्स में ऐसे कई संयोग मिल सकते हैं।
भारतीय एक्शन फंतासी उपसंस्कृति पर एक टिप्पणी
भारतीय एक्शन–फंतासी में यह संयोग आम हैं। हाल ही में चर्चित हुए उपन्यासकार अमीष त्रिपाठी भी शिव और राम की पौराणिक कथाओं को आधार बनाकर इसी प्रकार अपने एक्शन और फंतासी युक्त उपन्यास लिख रहे हैं। साथ ही अब कई नई भारतीय अंग्रेज़ी कॉमिक्स की रचना भी पौराणिक किरदारों के आधार पर हो रही है। एक्शन और फंतासी की दुनिया में मौजूदा भारतीय कहानियाँ शायद इसीलिए बहुत दूर तक नहीं निकल पाती हैं, क्योंकि अतीत की कहानियों का गुरुत्वाकर्षण उन्हें निरन्तर पीछे की तरफ खींचता रहता है।
जहाँ विदेशी एक्शन–फंतासी उपसंस्कृति में इतिहास और समाज के विभिन्न पहलुओं से प्रेरित होकर कहानियाँ रची जाती हैं, वहीं भारतीय उपसंस्कृति में वर्तमान से सीधे पौराणिक कथाओं की तरफ छलांग लगा दी जाती है, फिर चाहे वे कॉमिक बुक्स हों, या फिल्में हो या फिर टी वी सीरियल ही क्यों ना हों। विदेशी एक्शन–फंतासी में एलीगरी भी एक महत्वपूर्ण पहलु रहता है, जिसमें किसी एक कहानी के माध्यम से किसी दूसरी कहानी, घटना या सामाजिक–ऐतिहासिक परिस्थिति पर टिप्पणी की जाती है। इस तरह से इन कहानियों के लिए निरन्तर नए स्त्रोत मिलते हैं। यह सच है कि ऐसे में ये कॉमिक्स यदि उपभोक्तावाद के माध्यम बन जाएं तो सामाजिक–राजनैतिक मुद्दों पर कहानियों के माध्यम से समाज में एक विशिष्ट विचारधारा का काल्पनिकता के माध्यम से दबदबा बनाया जा सकता है, पर जैसा कि विदेशी एक्शन–फंतासी उपसंस्कृति में देखा गया है, एक मजबूत आलोचनात्मक दृष्टि से इन खतरों को पहचाना जा सकता है और इन्हें इंगित भी किया जा सकता है।
इसके उलट यदि एक्शन–फंतासी उपसंस्कृति पूरी तरह से धार्मिक–पौराणिक कहानियों से प्रेरित हो तो इनकी आलोचना कठिन हो जाती है। किसी विशिष्ट संप्रदाय के लोगों की भावना आहत होने के डर से आलोचनात्मक स्वतंत्रता को होने वाली क्षति के उदाहरण, हमारे समाज में बहुतेरे मिल जाते हैं। इसके साथ ही जिन सामाजिक–ऐतिहासिक मुद्दों की अनदेखी होती है, उनकी एक परिपक्व समझ का अभाव इस परिस्थिति का दूसरा बड़ा दुष्प्रभाव है। एक्शन–फंतासी उपसंस्कृति और खास कर कॉमिक बुक उपसंस्कृति में बहुत संभावनाएँ हैं, बशर्ते उनका इस्तेमाल उचित कारणों से हो और उन्हें आलोचनात्मक दृष्टि से बचाने की कोशिश ना की जाए।
-सुमित