फिल्मों के विदाई के गीतों में महिलाओं की असहायता का महिमामंडन

एक लड़की के विवाह से ही ‘विदा’ शब्द जुड़ा होता है क्योंकि उसके जीवन में अपने घर से जिस तरह का निष्कासन होता है, वह और किसी के साथ नहीं होता। एक लड़की के अतिरिक्त घर का कोई भी सदस्य विदाई के बाद वापस अपने घर एक मेहमान के रूप में नहीं आता। विदा के समय घर के दरवाजे से कदम निकालते ही उसे आभास कराया जाता है कि यह घर अब उसका नहीं है। उसे अपने घर से परायेपन की अनुभूति होने लगती है। ‘पराया’ का सीधा अर्थ लगाया जा सकता है कि अब लड़की के सुख-दुख से उसके घर वालों का कोई सम्बन्ध नहीं है और विदा के समय निकले पहले कदम के साथ ही उसका सम्बन्ध उस घर से सदा के लिए समाप्त हो जाता है; उस घर से, जहाँ उसके बचपन, किशोरावस्था और यौवन की यादें उसके मन में सदा समायी रहती हैं ।
यही परम्परा और प्रथा पुराने समय से लेकर आज तक चली आ रही है। एक लड़की के पराये होने के सामजिक बोध के इस कटु सत्य पर आधारित, फ़िल्मों में कितने ही गाने बनाए गए हैं, जिनमें वह अपने घर-आँगन की याद कर रही होती है। ये गाने लड़की के पराये होने के बोध को व्यक्त करने के साथ ,समाज की इस सोच को और पुष्ट करते हैं। प्रस्तुत है ऐसे ही कुछ गीतों का विश्लेषण
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अमिता चतुर्वेदी एक स्वतंत्र लेखिका हैं और अपना परिचय नामक ब्लॉग पर लिखती हैं।
