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आगरा में ‘स्मॉग’ 34% लोगों के लिए सबसे घातक: कौन हैं वो?

दिवाली के अगले दिन की सुबह शमशाबाद रोड, आगरा पर ली गई स्मॉग की तस्वीर
स्मॉग यानि स्मोक (धुँआ) से बना फ़ॉग (कोहरा), आजकल उत्तर मध्य भारत के प्रमुख शहरों में खतरनाक रूप से फैल रहा है। इन शहरों में से एक आगरा शहर भी है। इस महीने की 6 नवंबर 2017 को शहर के प्रदूषण का स्तर वर्ल्ड एयर क्वालिटी इन्डेक्स के अनुसार घातक स्थिति तक पहुँच गया था। इस खबर से शहर के लोगों में काफी डर फैल गया। लोगों ने बाहर जाने से तौबा कर ली। व्यायाम से, खास कर खुली हवा में व्यायाम से बचने की हिदायतें दी जाने लगीं। पर खास बात है कि भारत के किसी भी शहर की तरह आगरा शहर में ऐसे कई लोग हैं जिनके पास ना सिर्फ खुली हवा में ना जाने का विकल्प नहीं है, बल्कि इन्हीं लोगों पर इस प्रदूषण का सबसे अधिक असर भी पड़ता है।
ये लोग हैं वे जो रोज़ अपने काम पर पैदल या फिर साइकिल से सफर कर के जाते हैं। भारतीय सूचना प्रद्यौगिकि संस्थान, नई दिल्ली की अगुवाई में दिल्ली में किये गए 2015 के एक शोध में यह पता चला कि साइकिल पर चलने वाले लोग हर 15 मिनट में बाकि यातायात माध्यमों कि मुकाबले प्रदूषण के 2.5 कण (PM 2.5) कहीं अधिक साँस के साथ अंदर खींचते हैं। वातानुकूलित गाड़ियों के मुकाबले साइकिल चालक लगभग आठ गुना अधिक दर से प्रदूषण के शिकार होते हैं।वहीं पैदल चलने वाले लोग बाकि यातायात माध्यमों के मुकाबले हर एक किमी में सबसे अधिक प्रदूषण 2.5 कण (PM 2.5) को साँस के साथ अंदर खींच लेते हैं।

2011 की भारत जनगणना के अनुसार आगरा में काम पर साइकिल से जाने वाले कामगार लोगों का कुल कामगारों की संख्या में 17.3% (134392 लोग) हिस्सा है और पैदल जाने वालों का हिस्सा 16.2% (125256 लोग) है। यानि कुल कामगार जनसंख्या का 33.5% हिस्सा प्रदूषण के प्रभावों से अन्य लोगों से कहीं अधिक खतरे में रहते हैं।
क्योंकि साइकिल सवारों के लिए सबसे बड़ी समस्या अधिक देर तक प्रदूषण युक्त हवा में रहने की है इसलिए कुछ अनुसंधानों में कहा गया है कि साइकिल चालकों के लिए सड़क में ट्रैफिक जाम से बचने के लिए अलग से साइकिल ट्रैक या निर्धारित लेन की व्यवस्था की जानी चाहिए। आगरा शहर की प्रमुख सड़कों में से एक, मॉल रोड पर ऐसे ही एक साइकिल ट्रैक का काफी दूरी तक निर्माण किया जा चुका है। पर जैसा कि Opinion तंदूर के एक लेख में बताया गया है, ये ट्रैक अभी तक आम साइकिल चलाने वाले कामगारों द्वारा साधारणत: उपयोग में नहीं लिए जा रहे हैं।
आगरा शहर में प्रतिदिन विभिन्न यातायात माध्यमों से काम पर जाने वाले लोगों की संख्या (ग्राफिक्स-ओपिनियन तंदूर)
पर साइकिल ट्रैक का प्रयोजन लंबी दूरी के साइकिल सवारों के लिए प्रदूषण के मद्देनज़र व्यर्थ है। जैसा की आइ आइ टी के अनुसंधान से पता चलता है साइकिल सवारों के लिए प्रदूषण में अधिक समय तक रहना बाकि साधनों के मुकाबले तो अधिक घातक है ही, पर साथ ही लंबी दूरी तक चलना भी कम खतरनाक नहीं है। भारतीय जनगणना 2011 के अनुसार आगरा शहर में सबसे अधिक साइकिल सवार (35.5%) दो से पाँच किमी की दूरी तय करते हैं पर दूसरे स्थान पर वे साइकिल चालक हैं (23.8%) जो 21 से 30 किमी की दूरी तय करते हैं। यानि काफी साइकिल चालकों के लिए साइकिल ट्रैक प्रदूषण के दुष्परिणामों को कम रखने में असफल ही साबित होगा।

भारत में साइकिल चालक अपनी आर्थिक वर्ग-स्थिति के कारण साइकिल चलाने के लिए मजबूर रहते हैं और लंबी दूरी के साइकिल सवारों के लिए प्रदूषण के अलावा भी कई ऐसे कारण हैं जो उनके स्वास्थ्य पर बुरे प्रभाव डालते हैं। ऐसे में आवश्यकता है ऐसे समाधानों की जो ना सिर्फ प्रदूषण के प्रभावों से लोगों को सुरक्षा प्रदान करें पर साथ ही प्रदूषण में योगदान भी कम करें। नगरीय बस सेवाओं को मजबूत करना ऐसा ही एक समाधान है।

आगरा उत्तर प्रदेश के मात्र छ: शहरों में से एक है जहाँ जे एन एन यू आर एम के तहत नगरीय बस सेवा शुरू की गई थीं। पर इनका संचालन भी शहर की सभी सड़कों पर समान रूप से नहीं किया जा रहा है। जहाँ एम जी रोड पर ये बसें काफी संख्या में चलाई जा रही हैं वहीं अन्य मुख्य सड़कें जैसे कि यमुना रोड, शम्शाबाद रोड, फतेहाबाद रोड आदि पर ये ना के बराबर ही देखने को मिलती हैं। प्रदूषण से साइकिल सवारों की रक्षा के मद्देनज़र ये सड़कें इसलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इन सड़कों से आगरा जिले के काफी सारे ग्रामीण और देहाती इलाके जुड़ते हैं। बस सेवा के ना होने के कारण इन क्षेत्रों से शहर के मुख्य हिस्सों तक आने वाले कामगारों को लंबी दूरी के रास्तों पर साइकिल का सहारा लेना पड़ता है।

बसों के और दुरुस्त प्रचालन से इन लोगों की यातायात समस्या तो दूर होगी ही पर साथ ही उनके स्वास्थ्य को प्रदूषण के खतरों से भी अधिक बचाया जा सकेगा। साथ ही शहर के सभी रास्तों पर बसों के चलने से निजी वाहनों के चलन में कमी आ सकती है जिससे सामान्यत: प्रदूषण स्तर में कमी आ सकती है। बसों का चलना उन कामगारों के भी काम आ सकता है जिन्हें रोज़ पैदल यात्रा करनी पड़ती है और जो कि आइ आइ टी के शोध के अनुसार प्रदूषण के खतरों से अधिक जूझते हुए पाए जाते हैं।

प्रदूषण से जैसा कि देखा जा सकता है शहर की लगभग 34% जनता बाकि लोगों के मुकाबले अधिक खतरे में है। एसी गाड़ियों में चलने वाले मध्यम और उच्च वर्गीय लोग भले ही प्रदूषण से चिंतित हों पर उनके निजी वाहन प्रदूषण के स्तर में कहीं अधिक योगदान देते हैं और साथ ही उन्हें इससे सबसे कम खतरा है। साथ ही आर्थिक असमानता के कारण केवल इन ही के पास यह सुविधा मौजूद है कि वे बाहर की हवा से बच सकें क्योंकि साइकिल से और पैदल चलने वालों के लिए तो बाहर की हवा में निकले बिना अपने काम पर जाना तक मुमकिन नहीं है।

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