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लियो टॉल्सटॉय की कहानी को नया प्रसंग और अर्थ प्रदान करती नाट्य प्रस्तुति-‘व्लादीमीर का हीरो’

लियो टॉल्सटॉय के साहित्य में  ज़ारशाही के समय के रूस में फैली बदहाली और मुफलिसी और उससे पीड़ित और परेशान आम गरीब लोगों की व्यथा का मार्मिक चित्रण मिलता है। हालांकि इस चित्रण में नैतिकबोध और ईश्वरीय आस्था निहित होते हैं। उनकी ऐसी ही एक लघु कथा है “गॉड सीज़ द ट्रुथ बट वेट्स” (अंग्रेज़ी में अनुवादित शीर्षक), जिसमें उन्होंने व्लादीमीर शहर में रहने वाले एक व्यक्ति इवान अक्सिओनोव के एक गलत आरोप में जेल में बन्द होने और फिर ईश्वर में अपनी आस्था के चलते अपना जीवन बिताने की कहानी लिखी है। जेल में रहने के दौरान इवान के व्यक्तित्व में क्या बदलाव आते हैं और उस व्यक्ति से मिलने पर क्या होता है जिसके कारण वह जेल में बंद हुआ था, इन्हीं प्रसंगों के माध्यम से कहानी का सार सामने आता है।

इस शनिवार, आगरा के सूरसदन प्रेक्षागृह में भोपाल के शैडो नाट्य समूह ने टॉल्सटॉय की इसी कहानी पर आधारित ‘व्लादीमीर का हीरो’ नामक नाटक की प्रस्तुति की जिसका निर्देशन किया मनोज नायर ने। हालांकि नाटक का नाम और स्वयं यह नाटक इस कहानी पर आधारित हैं पर यह कहानी इस नाटक का एक प्रसंग है जबकि बाकी नाटक आधुनिक भारत की जेल की एक कहानी में आधारित किया गया है। भारत की एक जेल में बंद कुछ कैदी वहाँ काफी समय से बंद एक नाट्यकर्मी दयाल बाबा से नाट्य कला सीखते हैं जो अपनी-अपनी पकड़े जाने और जेल में बंद होने की कहानी एक पत्रकार को छोटी-छोटी नाटिकाओं के माध्यम से बता रहे हैं। जहाँ अधिकाँश कहानियाँ हल्की-फुल्की, हास्य से ओत-प्रोत हैं, दयाल बाबा की कहानी उच्च जातीय मानसिकता के कारण उत्पीड़न और गलत कारणों से जेल में बंद किए जाने की व्यथा का वृत्तान्त है जो कि कुछ मायनों में टॉल्सटॉय के नायक इवान की कहानी से मिलती है।

नाटक का कथानक फ्रेम्ड नैरेटिव यानि एक मुख्य कहानी के अन्दर गढ़ी गईं अन्य कहानियों के माध्यम से चलता है। निर्देशन में कई प्रयोगात्मक विशेषताएँ हैं। प्रतीकात्मक मंच सज्जा के साथ ही जो सबसे प्रमुख नाट्य विशेषता इस नाटक में है वह है शारीरिक अभिनय का प्रयोग जैसे कि स्लो मोशन में अभिनय या फिर एक ही जगह पर खड़े रहकर गतिमान होने का अभिनय। साथ ही प्रकाश व्यवस्था का प्रभावी उपयोग नाटक के महत्वपूर्ण हिस्सों को रेखांकित करता है। जहाँ ये सभी प्रयोग नवीन नाट्य कला के उदाहरण हैं वहीं इस प्रस्तुति में कई पारंपरिक विशेषताएँ भी थीं। सबसे महत्वपूर्ण उदाहरण था पारंपरिक गीत-संगीत का समावेश जिसको मंच पर ही उपस्थित ढोलक के संगीत के साथ सजाया गया था। संवाद में पारंपरिक बोली का उपयोग इस नाटक को काफी प्रामाणिकता प्रदान करता है। सभी कलाकारों ने एक ही प्रस्तुति में कही जा रहीं कई कहानियों में शामिल विभिन्न पात्रों को प्रभावी तरीके से निभाया।

नाटक के निर्देशक मनोज नायर ने बताया कि दयाल बाबा की कहानी सत्य कहानी पर आधारित है जिसमें, टॉल्सटॉय की कहानी से मिलाने के लिए, कुछ बदलाव किए गए हैं। दोनों ही कहानियाँ अपने-अपने ढंग से आधुनिक न्याय प्रणाली की विसंगतियों पर टिप्पणी करती हैं, पर जहाँ टॉल्सटॉय की कहानी नैतिकता और ईश्वरीय न्याय को संबोधित करती है, दयाल बाबा की कहानी नियति और ईश्वरीय न्याय की सोच पर प्रहार करती है। इस प्रकार एक कालजयी रचना को इस नाटक के माध्यम से ना सिर्फ आधुनिक समय में प्रासंगिक बनाया गया है बल्कि मूल कृति का एक अलग नज़रिया भी पेश किया गया है।

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