रंगलोक द्वारा ‘ताजमहल का टेंडर’ की प्रस्तुति: कटाक्ष और हास्य का ज़िम्मेदार उपयोग
कटाक्ष और व्यंग्य को अकसर मात्रहास्य से जोड़कर देखा जाताहै। पर इस विधाको केवल इस रूप मेंदेखना एक सीमित नज़रिया का परिचायकहै। कटाक्ष और व्यंग्य की सबसेमहत्वपूर्ण भूमिका होती है समाज औरसाहित्य के बीच संबंधस्थापित करना। जब भी किसीसाहित्यिक विधा में कटाक्ष और व्यंग्य का समावेशहोता है, उसमें सामाजिक चेतना की संभावनाएँभी उत्पन्न हो जाती हैं।पर सिर्फ ज़िम्मेदारी और समझदारी से निभायागया कटाक्ष ही इस कसौटीपर खरा उतर पाता है।
ऐसी ही एक व्यंग्यात्मक और कटाक्षपूर्ण साहित्यिक कृति है अजय शुक्लाद्वारा लिखित नाटक, “ताजमहल का टेंडर”। इस रविवार को सूरसदनप्रेक्षागृह में डिम्पी मिश्रा के निर्देशन में रंगलोकसांस्कृतिक संस्थान ने इस नाटकका सफल मंचन किया। आगरा की ही पृष्ठभूमिपर आधारित यह नाटक भारतीयसामाजिक–राजनीतिक परिदृश्य में निरंतरचली आ रही एक भारी समस्या, भ्रष्टाचार पर अधारित है। मुगल काल के शहंशाह शाहजहाँ आज के समय में उपस्थित हैं और अपनी दिवंगत बेगम मुमताज़ महल के लिए ताज महल बनवाना चाहते हैं। अपने इस सपने को पूरा करवाने के लिए आधुनिक समय के विभिन्न सरकारी दफ्तरों और दफ्तरशाही के चलते उन्हें किन–किन दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, यही इस नाटक की कहानी का सार है।
इस नाटक की खास बातहै कि यह एकसाम्राज्यवादी समय को आधुनिक उत्तर–औपनिवेशिक (यानि पोस्टकोलोनियल) समय केसाथ जोड़कर देखता है। इसी संबंध को मंच परिकल्पनाके माध्यम से बखूबी साधा गयाहै, जहाँ एकतरफ शहंशाह शाहजहाँ का आलीशान दरबार लगा हैऔर दूसरी तरफ आगरा विकास प्राधिकरण के एक मुख्यअभियंता यानि चीफ इंजीनियर का खालिस, देसी दफ्तर बना हुआ है। इन दोनों ही दृश्योंको एक ही मंचपर दिखाने और इनके माध्यम से कहानी को आगे बढ़ाने में प्रकाश परिकल्पना की अहम भूमिका रही।
नाटक में सभी पात्रों को निभाने वाले कलाकारोंकी उम्दा भूमिका रही। लगभग दो घंटे लंबेनाटक में किसी भी प्रकार का कथावाचननहीं था, इसलिए कलाकारों को हीअपने संवादों और अभिनय के द्वाराकहानी को आगे बढ़ानाथा। यह कार्य इसलिए पेचीदा था किनाटक की कहानी भ्रष्टाचार, अफसरशाहीऔर सरकारी तंत्र से जुड़े कुछबेहद क्लिष्ट पहलुओं को उजागर करने वालीहै, जिसको सहज रूपसे प्रस्तुत करना और दर्शकों को भीसहजता से समझा पाना एक कठिन कार्यहै। इन पहलुओं को अभिनयद्वारा प्रस्तुत कर लेना परसाथ ही नाटक कोबोझिल ना होने देनाऔर एक कटाक्ष से पूर्णनाटक के हास्य के पहलूको जीवित रखना, इस नाटकके निर्देशन और कलाकारों की उपलब्धि रही।
इस प्रस्तुति में सबसे अहम किरदार था चीफ इंजीनियरका जिसे निभाया राहुल गुप्ता ने। यदि पूरे नाटक में एक किरदार की निरन्तरउपस्थिति रही तो वह इसकिरदार की थी जिसनेलगातार दरबार और दफ्तर के दोनोंदृश्यों को एक सूत्रमें बाँधे रखा। एक बेहद क्लिष्टकिरदार, जिसके संवाद और परिकल्पनामें कई बारीकियाँ मौजूद थीं, को लगातार इतनी देर तक निभाना, संवादोंको बखूबी प्रस्तुत करना और साथ हीअभिनय को भी साधेरखना एक कठिन कार्यहै, जिसे राहुलने सफलतापूर्वक अंजाम दिया। इसमें उनका निरंतर साथ निभाते रहे उनके सहायक–अफसर बनेयश उप्रति। साथ ही मुदित शर्मा ने शाहजहाँके किरदार के आरम्भ में रौबीले व्यक्तित्व से अंत तकलाचार हो चुके रूपके परिवर्तन को सहजता से दर्शाया।सभी कलाकारों का आपस का तालमेल सराहनीय था जिसका किसी भी हास्य प्रस्तुति में अत्यंत महत्व होता है।
उल्लेखनीय बात है कि रंगलोक समूह में सभी युवा कलाकार पेशेवर रूप से नाटक नहीं करते हैं। इसमें अधिकाँश प्रतिभागी, फिर चाहे वे मंच पर उपस्थित हों या मंच के पीछे, छात्र–छात्राएँ हैं या अन्यत्र कार्यरत हैं, पर फिर भी अपनी कड़ी मेहनत और नाट्य–कला के लिए अपने समर्पण से बेहद कठिन प्रस्तुतियाँ निरन्तर प्रस्तुत करते रहते हैं और आगरा शहर में नाटक कला को ना सिर्फ जीवित रखे हुए हैं बल्कि उसका स्वास्थ्य भी बेहतर कर रहे हैं। नाटक में आगरा के लोगों की बढ़ती रुचि और इन प्रस्तुतियों में उनकी बढ़ती उपस्थिति इसके परिचायक हैं।
22 दिसंबर 2017 को रंगलोक समूह हिन्दी नाटक के एक बेहद महत्वपूर्ण रचनाकार मोहन राकेश का लिखा बहुचर्चित और उत्कृष्ट नाटक “आधे–अधूरे” सूरसदन में पेश करने जा रहा है, जिसमें आगरा शहर के अतिरिक्त देश के विभिन्न शहरों से कलाकार शिरकत करेंगे।