ताज महोत्सव का आगरा के सामाजिक-सांस्कृतिक परिदृश्य के लिए महत्व

अगर आप आगरा शहर के पुराने बाशिंदे हैं और यदि आप इस शहर की सबसे पुराने और स्थापित सामाजिक-सांस्कृतिक परंपराओं में

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‘पंछी ऐसे आते हैं’: रंगलोक द्वारा संजीदगी और हास्य लिए संतुलित मंचन

जहाँ बड़े शहरों में नाटकों का मंचन वाणिज्यिक और गैर-वाणिज्यिक रूप से निरन्तर होता रहता है, वहीं छोटे शहरों में

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अभिव्यक्ति में संभावनाएँ: ‘रंगलोक’ समूह द्वारा ‘जाति ही पूछो साधू की’ नाटक का मंचन।

प्रस्तावना: किसी भी सामाजिक आलोचना में बहुत सम्भावनाएँ  छुपी होती हैं।  कला के माध्यम से की गई सामाजिक आलोचना और

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