आगरा शहर में सवा घंटे से ऊपर साइकिल चलाना हो सकता है घातक

साइकिल यातायात को बेहतर स्वास्थ्य के लिए भले ही आवश्यक माना जाता हो पर अंतराष्ट्रीय स्तर पर किए गए एक अनुसंधान में पाया गया है कि विश्व के लगभग एक प्रतिशत शहरों में साइकिल चलाने के नुकसान, इसे ना चलाने के नुकसानों से अधिक हैं। इन नुकसानों का कारण है वायु प्रदूषण जिसे पार्टिक्युलेट मैटर यानि पी एम के मानक से मापा जाता है। ये वो प्रदूषक कण हैं जो हवा के साथ मनुष्य के फेंफड़ों और फिर रक्त प्रवाह में अपनी जगह बना लेते हैं और कई प्रकार की बिमारियों को जन्म देते हैं।

प्रदूषण के स्थानीय स्तर के अनुसार एक निश्चित समय अवधि तक साइकिल चलाने से, उससे होने वाले लाभ पर उससे होने वाली हानि हावी होने लगती हैं। इस संतुलन को ध्यान में रखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन के डाटाबेस के मुताबिक वायु प्रदूषण पर विश्वसनीय आंकड़े रखने वाले विभिन्न शहरों में, शोध के अनुसार उस समय अवधि का अनुमान लगाया गया जिसमें साइकिल चलाने से लाभहानि का यह संतुलन बिगड़ सकता है।

भारत में जहाँ कुछ शहरों में ये दुष्प्रभाव आधे घंटे में ही साइकिल चलाने के लाभ पर हावी पड़ सकते हैं हैं जैसे कि ग्वालियर और अलहाबाद, वहीं अन्य शहरों में ये संतुलन पौन, एक, सवा, डेढ़ और उससे अधिक समय अंतराल में बिगड़ता है। आगरा शहर भी इन शहरों में शामिल है जहाँ प्रदूषण का स्तर इतना है कि सवा घंटे की समय अवधि तक साइकिल चलाना स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद होने के बजाय हानिकारक सिद्ध हो सकता है।
 
यह शोध प्रिवेन्टिव मेडिसिन नामक शोध पत्रिका में छपा है। शोधकर्ताओं के अनुसार साइकिल चालकों की साइकिल चलाने की गति को औसतन 12 अथवा 14 किमी प्रति घंटा माना गया, जिसके अनुसार उनके प्रदूषित वायु में साइकिल चलाने के नुकसान का अनुमान लगाया गया।
 
आगरा शहर में प्रदूषण के एक विशेष कण पी एम 2.5 का सालाना औसत स्तर 105 μ(माइक्रो ग्राम)/क्यूब मीटर है। शोध के अनुसार75 मिनट की अवधि तक साइकिल चलाने से आगरा के साइकिल चालकों को लाभ से अधिक हानि होने का अंदेशा है।
 
इससे पहले Opinion तंदूर के एक लेख में यह बताया गया था कि साइकिल चालकों पर प्रदूषण का दुष्प्रभाव अन्य किसी वाहन सवार से अधिक होता है। शहर में साइकिल चालकों की संख्या 134392 है जो कि शहरी कामगारों का 17.3% हिस्सा है। भारतीय जनगणना 2011 के अनुसार इनमें से सबसे अधिक अनुपात उन लोगों का है जो दो से पाँच किमी तक साइकिल चलाकर अपने काम पर जाते हैं।
शोध में अनुमानित गति के अनुसार यह अनुमान लगता है कि 15 से 17.5 किमी या फिर उससे अधिक दूरी तक साइकिल चलाना शहरवासियों के लिए हानिकारक साबित होता है जिसके फलस्वरूप लगभग36.5% आगरा के साइकिल चालक वायु प्रदूषण के हानिकारक प्रभावों से बचने की स्थिति में नहीं हैं।
संभवित उपाय
विशेषज्ञों का मानना है कि साइकिल चालकों के लिए वायु प्रदूषण से बचने का एक उपाय है, आम सड़क के भीड़ वाले यातायात से बचना। इसके लिए कई विकसित शहरों में साइकिल ट्रैक बनाए गए हैं और बनाए जा रहे हैं जिससे जो लोग साइकिल से काम और अन्य गन्तव्यों तक जाने के इच्छुक हों उन्हें भारी ट्रैफिक का सामना ना करना पड़े और वे कम देर में ज़्यादा दूरी तय कर सकें।
गौरतलब है कि अखिलेश यादव की उत्तर प्रदेश की सरकार ने आगरा में भी ऐसे ही साइकिल ट्रैक के कई जगहों पर निर्माण कराए हैं। Opinion तंदूर के एक पिछले लेख में आप पढ़ सकते हैं कि ये ट्रैक जो भले ही बेहतरीन गुणवत्ता से बने हैं, आम साइकिल सवारों द्वारा अभी तक उपयोग में नहीं आ रहे हैं।
भारत जैसे विकासशील देश के तृतीय स्तर के शहर आगरा में वैसे भी अब तक साइकिल के लिए इतना उत्साह नहीं है कि लोग अपनी आम दिनचर्या में इसका उपयोग स्वेच्छा से करने लगें। अधिकांश लोगों को इसका प्रयोग अपनी आर्थिक स्थिति के चलते करना पड़ता है। वहीं शहर में बढ़ते मोटर वाहनों के यातायात के चलते प्रदूषण का स्तर बढ़ता रहता है जिसका सबसे अधिक खामियाज़ा इन साइकिल चालकों को उठाना पड़ता है।
ऐसे में सबसे सार्थक कदम जिससे मजबूरी में लंबी दूरी के साइकिल चालकों को भी सुविधा हो सके और साथ ही सड़कों पर वाहनों की तादाद भी कम हो सके जिससे वायु प्रदूषण में कामी आ पाए, शहर में नगरीय बस सेवा को और मजबूत और मुस्तैद करना है। फिलहाल नगरीय बस सेवा जो कि पिछली केन्द्र सरकार यूपीए की जे एन एन यू आर एम के तहत आगरा जैसे कुछ शहरों में शुरु की गई थी, सिर्फ शहर की मुख्य सड़क, महात्मा गाँधी मार्ग पर सुचारु रूप से चलाई जाती है। इसके अलावा बाकी प्रमुख सड़कें जैसे कि फतेहाबाद रोड, शमशाबाद रोड आदि, जिनसे शहर के कई ग्रामीण इलाके जुड़ते हैं, पर ये बसें नदारद ही हैं।
आने वाले समय में शहर में मेट्रो परियोजना की भी घोषणा की गई है परन्तु इतने बड़े स्तर के निर्माण कार्य से वायु प्रदूषण के और बढ़ने के ही आसार हैं और इस परियोजना के बनने में काफी समय भी लग सकता है। कहीं ऐसा ना हो कि बस जैसे विकल्पों की अनदेखी में शहर का प्रदूषण स्तर इतना बढ़ जाए कि ना सिर्फ सवा घंटे से भी कम समय अवधि के लिए साइकिल चलाना दूभर हो जाए बल्कि खुली हवा में थोड़ी देर के लिए सांस लेना भी कठिन लगने लगे।
-सुमित

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